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अनेकान्त
[माघ, वीर निर्वाण सं० २५६६
हुए साहित्यकी ओर बिल्कुल ही पीठ दिये हुए हैं और करके जैन विधिसे बृहत् शान्तिविधान कराया था, उसके प्रति अपना कुछ भी कर्तव्य नहीं समझते हैं। जिसमें सोने, चान्दीके कलशोंसे सुपार्श्वनाथ भगवानका
अष्टोत्तरी स्नान (अभिषेक) हुआ था और इस महो ___(३) युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि-लेखक
त्सवमें एक लाख रुपयेके करीब खर्च हुआ था । पूजन अगर चन्द नाहटा और भंवरलाल नाहटा । प्रकाशक
समाप्तिके अनन्तर मंगल दीपक और भारतीके समय शंकरदान शुभैराज नाहटा, नं० ५ ६ श्रारमेनियन स्ट्रीट
स्वयं सम्राट अकबर अपने पुत्र शाहजादे सलीम तथा कलकत्ता । साइज २०४३० १६ पेजी । पृष्ठ संख्या
अनेक मुसाहिबोंके साथ शान्ति विधानके स्थानपर उपसब मिलाकर ४५२ । मूल्य सजिल्द १) रु०।
स्थित हुआ था और उसने १० हजार रुपये जिनेन्द्र
भगवानके सन्मुख भेंटकर प्रभुभक्ति तथा जिनशासनका इस ग्रन्थका विषय इसके नामसे ही प्रकट है। गौरव बढ़ाया था। साथ ही, शान्तिके निमित्त अभिग्रन्थमें १७ वीं शताब्दीके विद्वान आचार्य युग प्रधान षेक जलको अपने नेत्रोंपर लगाया और अन्तःपुरमें श्री जिनचन्द्र जी का परिचय बड़ी खोजके साथ दिया भी भक्तिपूर्वक लगाने के लिये भेजा था। कहते हैं इस गया है । आप अपने समयके बड़े ही प्रभावशाली अष्ठोत्तरी अभिषेकके अनुष्ठानसे सर्वदोष उपशान्त हुए, प्राचार्य थे, सम्राट अकबर आपके प्रभावसे बहुत प्रभा- जिससे सम्राट्को परम हर्ष हुआ और वह जिनधर्मका वित हुआ था और उसने अपने राज्यमें कितने ही दिन और अधिक भक्त बना । मालूम नहीं यह घटना कहाँ हिसा न किये जाने के लिये घोषित किये थे और फिर तक सत्य है; परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि अकबरके
आपका अनुकरण करके दूसरे राजाओंने भी कुछ-कुछ समयमें जैनधर्मका प्रभाव बहुत कुछ व्यापक हुआ था. दिनोंके लिये अपने राज्योंमें अमारिकी (किसी जीवको और उसके अनुयायियोंकी संख्या तब करोड़ोंकी कही न मारनेकी) घोषणा की थी और इससे जैन-धर्मकी जाती है । यह सब सच्चरित्र एवं विद्वान साधु सन्तोंके बड़ी प्रभावना हुई थी। और भी कितनी ही अनुकूलताएँ प्रभावका ही फल है । प्रसिद्ध इतिहासज्ञ महामहोपाजैनियोंको अकबरके राज्यमें आपके प्रतापसे प्राप्त हुई ध्याय पं० गौरीशंकर होराचन्दजी अोझा महोदय ने, थीं। यह सब वर्णन इस ग्रंथमें शाही फर्मानोंकी नकल पुस्तकपर दी हुई अपनी सम्मतिमें, स्पष्ट स्वीकार किया के साथ दिया हुआ है । एक खास घटनाका भी इसमें है कि इन सूरिजीका उपदेश उस समयके तत्कालीन उल्लेख है और वह यह है, कि- अकबरके पुत्र सलीम मुग़ल बादशाह अकबरने सुनकर अपने साम्राज्यमेंसे के घर लड़की मूल नक्षत्रके प्रथम पादमें पैदा हुई थी, हिंसावृत्ति बहुत कुछ रोक दी थी । इनकी तपस्या ज्योतिषियोंने उसका फल शहजादा सलीमके लिये और त्यागवृत्ति ने बादशाहका चित्त जैनधर्मकी ओर अनिष्टकारक बतलाया था और लड़कीका मुँह न देखने खींच लिया था, जिससे जैनधर्मका विकास होकर तथा उसका जल-प्रवाह कर देने आदिके द्वारा परित्याग उस तरफ उत्तरोतर आस्था बढ़ती जाती थी । फलतः की व्यवस्था दी थी। तब इस दोषकी उपशान्तिके लिये बादशाह अपने यहाँ प्रायः जैनसाधुओंको बुलाकर उनसे अकबरने अपने मन्त्रीश्वर कर्मचन्द बच्छावतसे परामर्श उपदेश ग्रहण किया करता था। वह जैनसमाजके लिये