________________
३१२
अनेकान्त
जा चुकी है। इसमें जिस 'भाष्यं' पदका प्रयोग हुआ है उसका अभिप्राय राजवार्ति नामक तत्वार्थभाष्य के सिवा किसी दूसरे भाष्यका नहीं है । वह 'तस्वार्थ सूत्राणां' पदके साथ तत्त्वार्थ-विषयकसूत्रों अथवा तत्त्वार्थशास्त्रपर ब हुए वार्तिकोंके भाष्यकी सूचनाको लिये हुए है । राजवार्तिक 'तत्त्वार्थभाष्य' के नामसे प्रसिद्ध भी है । धवलादि ग्रन्थोंमें 'उक्तं च तत्त्वार्थभाष्ये' जैसे शब्दों के साथ भाष्यके वाक्योंको उद्धृत किया गया है । पं० सुखलालजी तो इसे ही दिगम्बर सम्प्रदायका 'गंधहस्ति महाभाष्य' बतलाते हैं । इसीमें वह तर्क, न्याय और श्रागमका विनिर्णय अथवा तर्क, न्याय और आगमके द्वारा ( वस्तुत्वा विनिर्णय) संनिहित है जिसका उक्त कारिका में उल्लेख है -- 'स्वोपज्ञ' कहे जानेवाले तत्त्वार्थ भाष्यमें यह सब बात नहीं है । और कारिकामें प्रयुक्त हुए 'उत्तमै: ' पदका अभिप्राय ' उत्तमपुरुषों' से इतना संगत मालूम नहीं होता जितना कि 'उत्तम पदों' के
[माघ, वीरनिर्वाण सं० २४६६
साथ जान पड़ता है । प्रसन्नादि गुणविशिष्ट उत्तम पदोंके द्वारा इस भाग्यका निर्माण हुआ है, इसमें ज़रा भी सन्देह नहीं है । यदि उत्तम पुरुषोंका ही अभिप्राय लिया जाय तो उसके वाच्य स्वयं अकलंक देव हैं । ऐसी हालत में इस कारिका परसे जो नतीजा निकाला गया है वह नहीं निकाला जा सकता - अर्थात् यह नहीं कहा जा सकता कि 'कलंकदेव वर्तमान में उपलब्ध होनेवाले इस श्वेताम्बरीय तत्वार्थाधिगम भाष्यसे अच्छी तरह परिचित थे और वे तत्त्वार्थ सूत्र और उसके इस भाष्य के कर्ताको एक मानते थे तथा उसके प्रति बहुमान प्रदर्शित करते थे । '
आशा है इस सब विवेचन परसे प्रोफ़ेसर साहब तथा दूसरे भी कितने ही विद्वानोंका समाधान होगा और वे इस विषयपर और भी अधिक प्रकाश डालनेकी कृपा करेंगे | इत्यलम् |
वरसेवामन्दिर, सरसावा, ता० १५-२-१६४०
२॥) रु० ।
साहित्य - परिचय र समालोचन
(१) उर्दू-हिन्दी कोश - संयोजक एवं सम्पादक पं० रामचन्द्र वर्म्मा (सहायक सम्पादक 'हिन्दी शब्दसागर' और सम्पादक 'संक्षिप्त शब्द-सागर' ) । प्रकाशक, पं० नाथूराम प्रेमी मालिक हिन्दी ग्रंथ - रत्नाकर कार्यालय हीराबाग, बम्बई नं० ४ | बड़ा साइज़, पृष्ठ संख्या, सब मिलाकर ४४० । मूल्य, सजिल्दका
यह कोश प्रकाशक महोदय पं० नाथूरामजीकी प्रेरणापर तय्यार हुआ है। बड़ा ही सुन्दर तथा उपयोगी है। इसमें उर्दू के शब्दों को, जिनमें अक्सर अरबी फ़ार्सीतुर्की आदि भाषाओं के शब्द भी शामिल होते हैं, देवनागरी अक्षरों में दिया है । साथमें यथावश्यकता भाषाके निर्देशपूर्वक शब्दोंके लिंग तथा वचनादि-विषयक व्याकरणकी कुछ विशेषताओंका भी उल्लेख किया है और