________________
वर्ष ३, किरण ४]
साहित्य परिचय और समालोचन
फिर हिन्दीमें अच्छा स्पष्ट अर्थ दिया है। इससे यह लेकर २० वीं शताब्दी तकके काव्यों, गीतों, रासों कोश हिन्दी पढ़ने लिखनेवालोंके लिये एक बड़ी ही प्रादिका संग्रह किया गया है । काग्य प्रायः हिन्दी कामकी चीज़ होगया है। इसके लिये लेखक और प्रेरक राजस्थानी, गुजराती और अपभ्रंश भाषामें है । कुछ दोनों ही धन्यवादके पात्र हैं।
नमूने संस्कृत और प्राकृतके भी दिये हैं । काव्यकार आज-कल हिन्दी भाषामें बहुत करके उद के शब्दों- प्रायः खरतर गच्छीय श्वे. साधु हैं-कुछ तपागच्छीय का और उर्दूकी कविताओं का प्रयोग होने लगा है- भी हैं । काव्योंमें कितना ही ऐतिहासिक वर्णन है और हिन्दुस्तानी भाषा दोनोंके मिश्रणसे बन रही है और इसलिये ग्रंथका 'ऐतिहासिक जैन-काव्य-संग्रह' नाम बहुत पसन्द की जा रही है। जो लोग उर्द नहीं जानते सार्थक जान पड़ता है। उन्हें आधुनिक पत्रों तथा पुस्तकोंके ठीक प्राशयको भाषा-विज्ञानका अध्ययन करने वालोंके लिये यह समझने में कभी-कभी बढ़ी दिक्कत होती है और यदि ग्रंथ बढ़ा ही उपयोगी है । इससे ८०० वर्ष तक सुन-सुनाकर वे कभी कोई उर्दूका शब्द बोलते या काव्योंकी रचना-शैली शताब्दीवार सामने आजाती है लिखते हैं और वह शुद्ध बोला या लिखा नहीं जातातो और उसपर से हिन्दी-भाषाके क्रमविकासका कितना पढ़ने-सुनने वालोंको बुरा मालूम होता है, और कभी- ही पता चल जाता है और अनेक प्रान्तीय भाषाओंका कभी उसके कारण शरमिन्दगी भी उठानी पड़ती है। थोड़ा-बहुत बोध भी हो जाता है । ग्रंथमें काव्योंका ऐसी हालतमें ऐसे कोशका पासमें होना बड़ा ज़रूरी है सार देते हुए काव्यकारों आदिका अच्छा परिचय दिया इसमें १०१६० शब्दोंका अच्छा उपयोगी संग्रह है, है, कठिन शब्दोंका कोष भी लगाया है, काव्योंमें पाए लेखक अथवा संयोजककी प्रस्तावना भी बड़ी महत्वपर्ण हुए विशेष नामोंकी सूची भी अलग दी है। और भी कुछ है. और वह कोशके अनेक विषयों पर अच्छा प्रकाश सूचियाँ दी हैं, साथ में प्रो० हीरालाल जी जैन, एम. ए. डालती है । काग़ज़ तथा बम्बईकी छपाई सफाई और अमरावतीकी ८ पेजकी प्रस्तावना भी है, इन सबसे गेट-अप सब उत्तम है। जिल्द खूब पुष्ट तथा मनोमोहक इस ग्रंथकी उपयोगिता खूब बढ़ गई है । सम्पादकोंने है । मूल्य भी अधिक नहीं है । पुस्तक सब प्रकारसे इस ग्रन्थकी सामग्री और संकलनमें जो परिश्रम किया संग्रह किये जाने और पासमें रखने के योग्य है ।
है, वह निःसन्देह प्रशंसनीय है और उसके लिये वे ऐतिहासिक जगत एवं साहित्यिक संसार दोनों हीके द्वारा
धन्यवादके पात्र हैं । ग्रंथकी छपाई-सफाई और जिल्द (२) ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह-सम्पादक बधाई उत्तम है। 14 चित्र भी साथमें लगे हैं, यह सब अगरचन्द नाहटा और भंवरलाल नाहटा । प्रकाशक- देखते मल्य बहुत कम जान पडता है। और वह शंकरदान शुभैराज नाहटा, नं० ५-६ पारमेनियन स्ट्रीट सम्पादक महोदयों तथा प्रकाशक महानुभावोंके विशिष्ट कलकत्ता । साइज, २०४३०, १६ पेजी, पृष्ठ संख्या साहित्य-प्रेम एवं सेवा-भावका द्योतक है । आपका यह सब मिलाकर ६६२ मूल्य सजिल्द १) रु०।
सत्प्रयत्न दिगम्बर समाजके उन धनिकों तथा विद्वानों इस सचित्र ग्रन्थमें विक्रमकी १२ वीं शताब्दीसे के लिये अनुकरणीय है, जो अपने इधर-उधर बिखरे