Book Title: Anekant 1940 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 31
________________ गोम्मटसार एक संग्रह ग्रन्थ है [ लेखक5- पं० परमानन्द जैन शास्त्री दिगम्बर गम्बर जैन सम्प्रदाय के ग्रन्थकर्ता श्राचार्यों में आचार्य नेमिचन्द्र अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । आप अपने समय के विक्रमकी ११वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध ग्रन्थकार हो गये हैं, और धवल, महाधवल तथा जयधवल नामके महान् सिद्धान्त ग्रन्थों में निष्णात थे। इसीसे 'सिद्धान्त चक्रवर्ती' कहलाते थे । गंगवंशीय राजा राचमल्लके प्रधान सेनापति समरकेशरी वीर मार्तण्ड आदि अनेक उपाधियों से विभूषित राजा चामुण्डराय के श्राप विद्यागुरु थे । आपने उक्त तीनों सिद्धान्त ग्रन्थोंका और अपने समय में उपलब्ध अन्य कर्म साहित्यका दोहन करके जो गोम्मटसार रूप नवनीत निकाला है वह बड़े ही महत्वका है और श्वेताम्बर सम्प्रदाय के उपलब्ध कर्म ग्रन्थोंसे बहुत कुछ विशेषता रखता है । इस गोम्मटसारके पठन-पाठनकी दि० जैनसमाजमें विशेष प्रवृत्ति है । आपने गोम्मटसार ( जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड ) के सिवाय, त्रिलोकसार, लब्धिसारकी भी रचना की है और 'कर्म प्रकृति' नामका एक ग्रन्थ भी इन्हींका बनाया हुआ कहा जाता है, परन्तु वह अभी तक मेरे देखने में नहीं आया । आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार के जीवनकाण्ड और कर्मकाण्ड नामक दोनों खण्डों में घटखण्डागम-सम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रबंध, बंध स्वामित्व, वेदना और वर्गणा इन पांच विषयोंका संग्रह किया है । इसी कारण गोम्मटसारका दूसरा नाम 'पंचसंग्रह' प्रयुक्त हुआ जान पड़ता है । गोम्मटसारके जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड रूप दोनों भागोंका संकलन करनेमें जिन ग्रन्थोंका उपयोग किया गया है यद्यपि वे सभी मेरे सामने नहीं हैं, परन्तु उनमें से जो ग्रन्थ इस समय उपलब्ध हैं, उनके. तुलनात्मक अध्ययनसे मालूम होता है कि उक्त काण्डों की रचनायें उन धवलादि सिद्धान्त ग्रन्थोंके सिवाय, 'प्राकृत पंचसंग्रह' से भी विशेष सहायता ली गई है । इसके अतिरिक्त कर्मविषयक वह साहित्य भी संभवतः आचार्य नेमिचन्द के सामने रहा होगा जिस पर से श्राचार्य पूज्यपाद ने अपनी 'सर्वार्थसिद्धि' में कर्मसाहित्यसे सम्बन्ध रखनेवाली ऐसी कुछ गाथाएँ 'उक्तंच' रूपसे बिना किसी संकेत उद्धृतकी हैं। क्योंकि श्राचार्य पूज्यपाद द्वारा उधृत गाथाओं में से कुछ गाथाएँ आचार्य नेमिचन्द्र ने भी अपने ग्रन्थोमें संकलित की हैं, और अवशिष्ट गाथाएँ उपलब्ध दि० कर्म साहित्य में कहीं पर भी नहीं पाई जाती हैं। इससे किसी ऐसे ग्रंथका अनुमान होना स्वाभाविक है जिसपरसे ये गाथाएँ पूज्यपाद और नेमिचन्द्रने उद्धृत की हैं। और यह भी संभव है कि आचार्य नेमिचन्द्र ने पूज्यपाद के ग्रंथपरसे ही उन्हें लेलिया हो । गोम्मटसारका गम्भीर अध्ययन करने और दूसरे प्राचीन ग्रंथों के साथ तुलना करनेसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि गोम्मटसारको रचना करने में उन प्राचीन ग्रंथों परसे विशेष अनुकरण किया गया है । यहाँ तक उनके पद्योंको ज्योंका त्यों अथवा कुछ पाठ-भेदके साथ अपने ग्रन्थ में शामिल किया गया है । इसीलिये गोम्मट सार ग्रन्थ श्राचार्य नेमिचन्द्रकी बिल्कुल ही स्वतन्त्रकृति

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