Book Title: Anekant 1940 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ ३०२ अनेकान्त [माध, वीर-निर्वाण सं० २०६६ पडिणीग मंतराए उवघादो तप्पदोस णिण्हवणे। चउवीस दु बावीसा सोलस एऊण जावणवसत्ता ॥ आवरणदुगंभूयो बंधदि अचासणाएवि ॥ -प्रा० पंचसं० ३, ७८ --गो० क० ८०० पणवरणा पण्णासा तिदान छादाल सत्ततीसा य । इसी प्रकार पंचसंग्रहकी २, ४, ५, २६, ४७, ५०, चदुवीसा बावीसा बावीसमपुव्वकरणोति ॥ २०१, २०२, २०३, २०४, २०५, २०६, २०७, २०८, थूले सोलसपहुदी एगणं जावहोदि दसठाणं। . २०६, २१०, २१७, २४०, २५१, ४१२, ४२३, ४२७, सुहुमादिसु दस णवयं णवयं जोगिम्मि सत्तेव ॥ ४२८, ४२६, ४३०, ४४५, ४५४, ४५५, ४६३, ४८८, --गो० क० ७८६, ७६० ४८६, ४६५, ४६७, ५०१, ५०२, ५०३, ५०५, ५०६, अट्टत्तीससहस्सा बे चेव सयाहवंति सगतीसा । ५१३, ५३३, ५४७, ५५५, ७३६, नम्बरकी गाथाएँ पदसंखा णायव्वा लेस्सं पढि मोहणीयस्स ॥ गोम्मटसार कर्मकाण्ड में क्रमशः नं० २०, २२, ३५, -प्रा० पंचसं०पत्र, ५५ २६४, २७६, २८१, ८०१, ८०२, ८०३, ८०४,८०५, अट्टत्तीससहस्सा बेरिणसया होंति सत्ततीसा य । ८०६, ८०७, ८०८, ८०६, ८१०, ४५५, १२२, ४६३, पयडीणं परिमाणं लेस्सं पडि मोहणीयस्स ।। १३६, १५२, १५४, १३४, १३५, १३६, १७८, १६३, -गो क०, ५०५ १६४, १६५, १८३, १८२, ४८, १८५, १६२, २०७, इनके अलावा पंचसंग्रह के पत्र ५७ और ६१ की २०८, २०६, २११, २१५, २१०, ६३०, ४६३, ५०८, दो गाथाएँ और भी गोम्मटसारमें ७१०, और २७१ ७०५, नम्बर पर पाई जाती हैं। नं० पर उपलब्ध होती हैं । और कुछ गाथाएँ ऐसी भी इनके अतिरिक्त जिनगाथाश्रोंमें कुछ पाठ-भेद पाई जाती हैं जिनका पूर्वार्ध तो मिलता है पर उत्तरार्ध पाया जाता है उन्हें नीचे दिया जाता है:- नहीं मिलता-वह बदला हुआ है । उन्हें लेख वृद्धि के णामस्स य बंधोदयसंताणिगुणं पडुच्च य विभज। भयसे छोड़ा जाता है। तिगयोगे णय एत्थ दु भणियव्वं अस्थजुत्तीए॥ इस सब तुलना परसे मालूम होता है कि गोम्मट -प्रा० पंच सं० पत्र ५६ सार एक संग्रह ग्रंथ है। और इसके संग्रह करने में णामस्स य बंधोदय सत्ताणि गुणं पडुच्च उत्ताणि। प्राचार्य नेमिचन्द्रने प्राकृत पंचसंग्रहसे विशेष सहायता पत्तेया दो सव्वं भणिदव्वं प्रत्थजुत्तीए ॥ ली है। . --गो० क०, ६६५ । वीर सेवामन्दिर, सरसावा; पणवण्णा पण्णासा तेयाल छयालसत्त तीसाय । ता० १६-२-१९४०

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