________________
२६४
अनेकान्त
स्थापन करेंगे । इस लेख में अन्य व्यक्तियों द्वारा उपस्थित किये हुए दो नवीन आदर्शों की ओर जैनसमाजका ध्यान आकर्षित करता हूँ। आशा है समाज के नेता एवं विद्वान्गण उनपर गंभीर विचार करेंगे ।
गत वर्ष इधर कलकत्ता आते समय रास्ते में आगरे ठहरा था तो वहाँकी 'दयालबाग' नामक संस्था आदर्शको देखकर दंग रह गया ! इतने थोड़े वर्षों में इतनी महती उन्नति सचमुच आश्चर्य - जनक है ! मनुष्य जीवनको सुखप्रद बनाने एवं बिताने की जो सुव्यवस्था वहाँ नजर आई वह भारतके सभी समाजोंके लिये अनुकरणीय बोध पाठ है । जीवनोपयोगी प्रायः सभी वस्तुएँ वहाँ प्रस्तुत की जाती हैं, और उस संस्थामें रहने वाले सभी लोगों को उन्हींका व्यवहार करना आवश्यक माना गया है। बड़े-बड़े बुद्धिशाली इन्जिनियर आदि कम वेतन में संस्थाको अपनी समझ कर कर्त्तव्य नाते सेवा कर रहे हैं। उनकी पवित्र सेवा एवं लगनका ही यह सुफल है कि थोड़े ही वर्षोंमें करोड़ों रुपयोंकी सम्पति वहाँ हो गई है और दिनोदिन संस्थाका भविष्य उज्ज्वल हो रहा है । संस्था में काम करने वाले सभी सुशिक्षित हैं, शिक्षाका प्रबन्ध भी बहुत अच्छा है एक-दूसरे में बहुत प्रेम है और सभी व्यक्ति स्वस्थ एवं सुखी दिखाई देते हैं ।
प्रतीत
।
धार्मिक संस्कारोंके सुदृढ़ बनाने के लिये संस्था में रहने वाले सभी व्यक्ति सुबह शाम नियत समय एकत्र होकर प्रार्थना, व्याख्यान श्रवण ज्ञानगोष्टी करते हैं। लाखों रुपयोंकी लागतका एक या मन्दिर बन रहा है । यद्यपि मैंने इस संस्थाका
[ माघ, वीरनिर्वाण सं० २४६६
केवल दो ही घंटे में अवलोकन किया था अतः उसके पूरे विवरण से मैं अज्ञात हूँ, फिर भी थोड़े समय में जो कुछ देखा उससे वह संस्था एक आदर्श संस्था प्रतीत हुई। जैन समाजकी स्तुति के इच्छुक व्यक्तियों को यहां से कुछ बोध ग्रहण करना चाहिये ।
इसी प्रकार एक बार आते समय दिल्ली में एक आदर्श मन्दिरको देखनेका सुअवसर मिला, उसका नाम है 'बिडला मंदिर ।' परवार बन्धुके सुयोग्य सम्पादक श्रीयुत् धन्यकुमारजी जैन भी साथ थे । निःसन्देह यह एक दर्शनीय देवस्थान है । भारतवर्ष में यह अपने ढंगका एक ही है । इस मंदिर से सर्व-धर्मसमभावका सुन्दर आदर्श-पाठ मिलता है । यद्यपि मुख्य रूपसे यह मंदिर बिड़ला जी के उपास्य श्री लक्ष्मीनारायणजीका है, पर वैसे सभी प्रसिद्ध धर्मोंके उपास्यदेवों-महापुरुषों कीमूर्तियाँ एवं चित्र इसमें अंकित हैं, स्थान स्थान पर प्रसिद्ध महापुरुषोंके उपदेश वाक्य चुन चुन कर उत्कीर्ण किये गये हैं, जिससे प्रत्येक दर्शन
वाले निसंकोचसे वहां दर्शनार्थ जा सकते हैं और सब एक साथ एक ही मंदिर में बैठकर अपने अपने उपास्य देवोंकी उपासना कर सकते हैं । कहां सर्व-धर्मसमभावका इतना ऊँचा आदर्श और कहां हमारा जैन समाज, जो दिगम्बर श्वे ताम्बर मूर्तियों एवं तीर्थोंके लिये लाखों रुपये व्यर्थ बरबाद कर रहा है । इस आदर्शका अनुसरणकर यदि हमारा जैन समाज थोड़ा-सा उदार होकर अपनी साम्प्रदायिक कट्टरताको कम करदे तो आज ही समाज उन्नति की ओर अग्रसर होने लगे । लाखों रुपयोंका व्यर्थ खर्च बच जाय और वे रुपये दयालबाग़-जैसी संस्थाके स्थापनमें, जैन