________________
जीवन-साध
वर्ष ३, किरण ४ ]
लिया है और तद्विषयक पत्र व्यवहार भी वे कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने अपभ्रंश भाषाके विषय में कुछ भी प्रकाश नहीं डाला है । इसलिए अपभ्रंश भाषाके विद्वान् बाबू हीरालालजी एम.ए. प्रोफेसर किङ्ग एडवर्ड कालेज अमरावती और जो इस विषय के पूर्ण विद्वान् हैं, उन्हें एक कोर्स बनाना चाहिए, ताकि जैनदर्शनके साथ २ प्रथमा, मध्यमा, साहित्यरत्नके कोर्समें अपभ्रंश भाषाका भी साहित्य रखवाया जा सके। इस विषय में जो विद्वान् सलाह देना चाहें वे कृपया पत्रों में उसे प्रकाशित करबा देवें या मेरे पास भिजवा दें। क्योंकि अपभ्रंश साहित्य के उद्धार होने से मध्यकालीन भाषा विकास
जीवन-साथ [ ले० – पं० भवानीदत्त शर्मा 'प्रशांत' ]
मेरी जीवन-साध !
पर - हित में रत रहूँ निरन्तर, मनुज - मनुजमें करूँ न अन्तर । नस-नसमें बह चले देशकी प्रेमधार निर्बाध ॥
मेरी जीवन-साध ॥ १॥
बौद्ध, जैन, सिख, आर्य, सनातन, यवन, पारसी और क्रिश्चियन |. हिन्द-देशके सब पुत्रोंमें हो अब मेल अगाध ॥ मेरी जीवन- साध ॥२॥
पर अधिक प्रकाश पड़नेकी आशा है । जैनदर्शन सम्बन्धी कोर्स के लिए श्रीमान् न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमार जी शास्त्री और पूज्य पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीको प्रकाश डालना चाहिए, जिससे रजि - स्ट्रार महोदयको कोर्स के रखने में सहूलियत हो सके । और जो विद्वान् मेरे पास भेजना चाहें वे मेरे पास भेजदें । मैं कोर्स नियत करवाकर के उनके पास भेज दूंगा । आशा है विद्वान मेरे इस निवेदन पर ध्यान देंगे । जैनदर्शनका कोर्स सम्मेलनकी परीक्षा में रक्खे जाने का अधिकांश श्रेय, भाई रतनलाल जी संघवी न्यायतीर्थ को ही है, जिन्होंने इस विषय में लगातार दो वर्षसे प्रयत्न किया है
देश-प्रेमका पाठ पढ़े हम, साक्षरता-विस्ता
२८२
लिपी-भेद करनेका हमसे हो..
न कभी अपराध | मेरी जीवन-साध
अपने अपने मनमें प्रण कर एक दूसरे को साक्षरकर निज-स्वतन्त्रता के प्रिय पथसे दूर करें हम बाध ॥ मेरी जीवन-सा ॥ ४॥