Book Title: Amar Vani
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 8
________________ के प्रलोभन देकर शान्त करता रहा है, और जो निर्बल हैं, उन्हें तलवार दिखा कर । किन्तु, इससे शान्ति कभी हुई ही नहीं। शान्ति का असली उपाय है, अपनी आवश्यकताएँ घटाकर दूसरे के अभाव की पूर्ति करना । यदि टोला अपनी उभरी हुई मिट्टी से पास के खड्डे को अपने आप भर दे, तो उसे आँधी और तूफानों का कोई भय ही न रहे । शान्ति का सच्चा मार्ग भी यही है। “मनुष्य ने समुद्र के गम्भीर अन्तस्तल का पता लगाया, हिमालय के उच्चतम शिखर पर चढ़ कर देखा, आकाश और पाताल की संधियों को नाप लिया, परमाणु को चीर कर देखा, किन्तु वह अपने आपको नहीं देख सका। अपने पड़ोसी को नहीं देख सका। दूरबीन लगाकर नये-नये नक्षत्रों को देखने वाला, पड़ोसी की ढहती हुई झोंपड़ी को नहीं देख सका । चन्द्रलोक की सैर करने वाला अपने प्रासाद के पीछे छिपी हुई अँधेरी गली की ओर कदम न बढ़ा सका । इसको विकास कहा जाए या ह्रास ?" अंधकार मानव से इस प्रश्न का उत्तर चाहता है। "आज का मंदिर ईश्वर का पूजा स्थान नहीं, बल्कि उसका कारावास है । आज की मस्जिद अल्लाह का इबादतखाना नहीं, उसकी कैद है। इन कैदखानों की दीवारों को गिरा दो। ईश्वर और खुदा को खुली साँस लेने दो। उन्हें दिल के आसन पर बैठाकर पूजो।" सम्प्रदायवाद पर यह कितना मार्मिक प्रहार है ? ग्रन्थकार जहाँ वैज्ञानिकों को कोसता है, वहाँ तर्क की शुष्क समस्याओं में उलझे हुए दार्शनिकों को भी नहीं छोड़ता । सुनिए "दार्शनिकों ! भूख, गरीबी और अभाव के अध्यायों से भरी हुई इस भूखी जनता की पुस्तक को भी पढ़ो। ईश्वर और जगत् की पहेलियाँ सुलझाने से पहले, इस पुस्तक की पहेलियों को सुलझाओ।" [ ७ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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