Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 15
________________ ( ७ ) उसमें दूसरा कारण यह भी है कि मांसाहारी को गर्मी बहुत लगती है और श्वास भी ज्यादा चलती है किन्तु फलाहारी को नतो वैसी गर्मी लगती है और न श्वासही बढ़ती है। ** पाठकगण ! आपलोगों ने सुना होगा कि जब रूस और जापान की लड़ाई हुई थी तब प्रायः कचेही मांस के खानेवाले बड़े भयानक रूसियों को भी, मिताहारी और विचारशील जापानी वीरों ने परास्त करके संसार में कैसी आश्चर्यकारिणी अपनी जयपताका फहराई थी ? | यदि मांसाहार से ही वीरता बढ़ती होती तो रूस की सेना में मनुष्य बहुत थे, इतनाही नहीं किन्तु मांसाहार करने में भी कुछ कमी नहीं थी, फिरभी उन्हीं लोगों की क्यों हार हुई ? इससे साफ मालूम हुआ कि हार का मूल कारण. अस्थिर चित्तताही है 1 मनुष्य की प्रकृति मांसाहार की न होने पर भी जो इन्द्रिय की लालच से निर्विवेकी जन मांसाहार करते हैं उसका बुरा फल सबको प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है । अर्थात् मांसाहारी प्रायः मद्य का सेवक, वेश्यागामी तथा निर्दयहृदय होता है । यद्यपि कोई २ मांसाहारी बता दुर्गुणी नहीं होता तौभी उसके शरीर में बहुत रोग हुआ करते हैं । जैसे मत्स्य- मांसादि के पाचन न होने से खानेवाले को रात्रि में खट्टी डकारें आतीं हैं, और बहुतों का खून बिगड़ जाता है, तथा शरीर पीला पड़जाता है, हाथ पैर सूख जाते हैं, पेट बढ़ जाता है, और किसी २ के तो पैर भी फूल जाते हैं, तथा गले में गांठ पैदा हो जाती है; और यहां तक देखने में आया है कि बहुत

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