Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 32
________________ (२४) शान्ति चाहनेवाली स्वार्थी दुनियां को। यहाँपर ध्यान देना उचित है कि पहिले मानतारूप कल्पना ही झूठी है, अगर मानता से देवी आयुष्य को बढाती होती तो दुनियां में कोई मरता ही नहीं। जो लोग मानता मानते हैं उनसे अगर शपथपूर्वक पूछा जाय तो वह भी अवश्यही यह स्वीकार करेंगे कि सभी मानता हमलोगों की फलीभूत नहीं होती । कितनी ही दफे हजारों मानता करने पर भी पुत्रादि मरण को प्राप्त होता ही है। अतएव मानता दोनों प्रकारसे व्यर्थ ही है, क्योंकि रोगी की अगर आयुष्य है तो कभी मरनेवाला नहीं है तब मानता का कोई प्रयोजन नहीं है, और यदि आयुष्य नहीं है तो बचनेवाला नहीं है, तो भी मानता निष्फल है। और भी विचारिये कि-यदि बकरे की लालच से देवी तुम्हारे रोगों को नष्ट करेगी तो वह तुम्हारी चाकरानी ठहरी, अथवा रिश्वत ( घूस ) लेनेवाली हुई। क्योंकि जिससे माल मिले उसका तो भला करे और जिससे न पावे उसका भला न करे । घूस खानेवाले की दुनियां में कैसी मानमर्यादा होती है सो पाटक स्वयं विचार कर ही सकते हैं। महाशय ! माता शब्द का अर्थ पहिले विचारिये । जो सर्वथा पालन पोषण करती है वही माता कही जाती है और जिसके पास बकरे का बलिदान किया जाता है वह जगदम्बा के नाम से दुनियां में कैसे प्रसिद्ध हो सकती है ? | क्योंकि जो समस्त जीवोंकी माता वही जगदम्बा कही जा सकती है तो समस्त जीवों के बीचमें ।

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