Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 133
________________ (१२५) है । मृत्यु पाकरके कहीं पर उत्पन्न हुए तथा परोक्ष शरीर को धारण करनेवाले प्रियजन अर्थात् माता पितादि कुत्ते की माफिक मूर्ख लोगों से भोजन कराकरके तृप्त किये जाते हैं । यह कौनसा न्याय ह ? । दूसरी बात यह है कि मांस विना श्राद्ध क्रिया ठीक नहीं होती है वैसेही कल्पित युक्तियाँ देकरके ब्राह्मणों की मांसद्वारा तृप्ति की जाती है। किन्तु ऐसे श्राद्ध करने की सम्मति कौन धर्मप्रिय देगा ? । एक दफे ऐसा हुआ था कि पिताके श्राद्ध के रोज पुत्र ने एक भैंसा खरीदा, जोकि पिता का जीव था, उसको मारकर उसने श्राद्ध किया और ब्राह्मणों को सन्तुष्ट किया। उसके बाद स्वयं जब भोजन करने बैठा, तब एक ज्ञानी महात्मा भिक्षा के निमित्त वहाँ गये, किन्तु महात्मा जी भिक्षा न लेकर ही चले गये, इससे वह श्राद्ध करनेवाला मुनि जी के पीछे चला और पैर पर पड़कर बोला कि हे पूज्यवर्य! मेरे घर पर आप पधार कर भी विना लिये ही क्यों चले आये। मुनि ने शान्त स्वभाव से जवाब दिया कि जहां मांसाहार होता हो वहां से भिक्षा लेनेका मुनियों का आचार नहीं है । मुझे तुमारे घर में आने से वैराग्य की वृद्धि हुई है । तब उसने कहा कि मेरे घर जाने से आपकी वैराग्य वृद्धि का क्या कारण है सो कृपाकरके कहिये । उसके उत्तर में मुनि ने उपकारबुद्धि से कहा कि जिसका श्राद्ध तुमने किया है उसी का जीव जो महिष था उसे तुमने मारा है । और जो कुत्तो मांसमिश्रित हड्डी को खाती है वह तेरी माता है, और जिसको तूं गोद में बैठा कर मांसयुक्त कवल देता है वही तेरा

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