Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ (8) और दूसरे आकार कि जिसमें वनस्पति-वर्ग के सबसे पुष्टिकारक और रसकसवाले सोहरम धारण करनेवाल तत्व आते हैं वैसी वस्तुओं में से अपने नियमित भोजन को प्राप्त करते हैं आर मनुष्यों और बन्दरों के दांतो के बीच का घनिष्ठ संबन्ध सिद्ध करते हैं कि मनुष्य दुनियां के प्रारम्भ काल से ही बगीचे के वृक्षों के फल खाने के लिये ही उत्पन्न किये गये थे. प्रो. पीयरगेसेन्डी-कि जो सतरमीसदी क सब विद्वनों से श्रेष्ठ और सबसे नामाङ्कित तत्त्वज्ञानी होगये हैं वे कहत हैं कि मैं यहां पर पुनः कहता हूं कि अपने स्वभाव की असली बनावट पर से अपने दांत मांसाहार करने के लिये नहीं परन्तु फक्त मेवा खाने के लिये बनाये थे। जगत्पसिद्ध महान् विद्वान् चाल्स डारविन स्पष्ट रीति से कहते हैं कि-उस काल में और उस स्थल में (फिर चाहे जो काल और जो स्थान हो) कि जब मनुष्य ने पहले पहल अपने बलका ढकना नष्ट कर दिया तब वह अनुमान से गरम देशका रहनेवाला था यह वृत्तान्त फल फलादिकी तर्फ जाता है कि जिस फल फलादि के भोजन पर मुकाबले के नियम द्वारा अन्वेषण करते हुए वह उस समय निर्वाह करता था। प्रॉ. सर चार्लस बेल, एफ, सी, एस. महाशय कहते हैं किमेरा ऐसा अनुमान है के इस भाँति कथन करने में जरा भी आश्चर्य नहीं है कि मनुष्यकी बनावट के साथ संबन्ध रखने वाला हरएक वृत्तान्त सिद्ध कर देता है कि मनुष्य मूल से ही ट-फल खाने वाला प्राणी तरीके उत्पन्न हुआ था यह मत दांतों और पाचन करने वाले अङ्गोंकी रचना पर से तथा चमडी की बनावट तथा उसके अवयवों की रचना के उपर से मुख्य करके बनाने में आया है /

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144