Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 139
________________ (३) (२.), खोराक, आरोग्य और बल. लंडनकी काउन्टीकौंसिलका प्रयोग. - इ० स० १९०८ में 'लंडन वेजीटेरियन एसोसीएशन' के सेकेटरी मिस, एफ, आइ, निकलसनने १०००० लड़कोंको छ महीने तक वनस्पति के खोराक पर रक्खा था, और ' लंडन काउन्टीकौंसिल ने इतनेही लडकोंको छ महीने तक मांसाहार पर रक्खा था छ। महीने पश्चात् इन दोनों विभाग के बालकों की परीक्षा वहाँ के वैद्यकशास्त्र के जाननेवाले विद्वानोंने की थी, और उसमें यह सिद्ध हुवा कि ' वनस्पति के आहार करनेवाले बालक मांसाहारी बालकों से अधिक तन्दुरस्त, वजन में विशेष, और स्वच्छ चमडीवाले थे। 'लंडन काउन्टीकौंसिल' की विनति से उसी के प्रबन्धमें लंडनकी वेजीटेरियन एसोसीएशन सभा', लंडन के हजारों गरीब बालकोंको वनस्पति के आहार पर रखती है । (३) प्रॉ. एच. शाफहोझेन महाशय कथन करत हैं कि-मांस खाने का स्वभाव यह कोई मनुष्य की मूल प्रेरणा नहीं है कि पूँछ रहित बन्दरों की भाँति वह उसके दाँतों पर से मेवा खाने वाला है और इसी लिये मांस खाने के वास्ते तो उत्पन्न ही नहीं हुआ है, डॉ. सिल्वेस्टर ग्रेहाम महाशय कहते हैं कि- शरीर संबन्धि बनावट के मुकाबले की. विद्या सिद्ध करती है कि मनुष्य स्वाभाविक रीति से फक्त अन्न, फल, बांज, मेवा आर अनाज के दानों के ऊपर निर्वाह करने वाला प्राणी है,

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