Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 134
________________ ( १२६ ) पक्का दुश्मन है इत्यादि कारणों को देख करके मुझे वैराग्य हुआ है । तब उसने कहा कि यह बात सत्य है कि नहीं इसमें निश्चय कैसे हो ? । मुनि ने कहा कि कुत्ती जहां जमीन खनतो है वहां पर द्रव्य है अर्थात् कुत्ती तुझे गडा हुवा धन बतावेगी । कुत्तों के स्वभावानुसार कुत्तीने उस जमीनको खनडाला, तदनन्तर उसमें से द्रव्य प्राप्त हुआ । और उसको निश्चय हुआ कि श्राद्ध करने से यह अनर्थ हुआ । अर्थात् हिंसा हुई। श्राद्ध करने से पिता को पहुँचता है यह बात झूठी है क्योंकि अपना किया हुआ ही अपने को मिलता है। श्राद्धादिकृत्य स्वार्थान्ध मनुष्योंने अपनी जीविका के लिये ही चलाया है। यह समझकरके, उसने प्रतिज्ञा की कि आज से कभी श्राद्ध नहीं करना । यह बात जान करके भी मांसाहार के लोलुप बहुत से ब्राह्मणाभालों ने मिलकर विचार किया कि श्राद्ध में साधुओं को भिक्षा नहीं देनी चाहिये । जो बात आज भी पूर्वदेश में प्रचलित है कूर्मपुराण में लिखा है कि अतिथि-साधु वगैरह को भोजन कराकर श्रोद्धकरनेवाले को भोजन करना चाहिये । तथा उनको न खिलाकर खानेवाले को बडा पातक कहा है । यथा___ "भिक्षुको ब्रह्मचारी वा भोजनार्थमुपस्थितः । उपविष्टस्तु यः श्राद्धे कामं तमपि भोजयेत् ॥ १॥ अतिथिर्यस्य नानाति न तत् श्राद्धं प्रशस्यते । तस्मात् प्रयत्नात् श्राद्धेषु पूज्या ह्यतिथयो द्विजैः॥ २॥

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