Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 108
________________ (१०० ). तात्पर्य-कुल क्रम से प्राप्त हिंसा को भी त्याग करना चाहिये, हिंसा त्याग करने से जैसे कालसौकरिक कसाई का पुत्र सुलस श्रेष्ठ गिना गया है । प्राकृत गाथा का भावार्थ-जो पुरुष मृत्यु की इच्छा तो करता है परन्तु दूसरे को दुःख देने की मन से भी इच्छा नहीं करता है, वह उत्तम रीति से सुगति के मार्ग का ज्ञाता होता है, जैसे कालसौकरिकपुत्र. सुलस के कुटुम्ब ने उसे हिंसा करने के लिये बहुत ही प्रेरणा की, किन्तु उसने हिंसा नहीं की। यह दृष्टान्त विस्तार से योगशास्त्र में लिखा हुआ हैं । उसका सार यही है कि जब सुलस के कुटुम्ब ने अनेक युक्ति से हिंसा करने के लिये उसे बाध्य किया, यहाँ तक कि सुलस के पाप में भी भाग लेने को कबूल किया । तब सुलल लाचार हो कुहाडी लेकरके तो चला, किन्तु अपने कुटुम्ब के अन्तःकरण में प्रतिबोध करने के आशय से तथा स्वयं हिंसा से सर्वथा छूटने के विचार से जान बूझ कर उसने अपने ही पैर पर कुहाडी मार ली । जिससे उसका पैर रुधिर और मांस से पूर्ण दिखाई देने लगा, तदनन्तर उसके चिल्लाने पर सभी कुटुम्ब इकट्ठा हुआ । उसके बाद जब उनलोगों के उचित रीति से दवा वगैरह करने पर भी सुलस की वेदना शान्त न हुई, तब उसने अपने कुटुम्ब से यह कहा कि हमारे दुःख में ते थोडा थोडा तुमलोग भी बाँटलो । उस समय एक वद्ध ने उत्तर दिया कि किसीकी वेदना क्या किसीसे बाँटी जा सकती है ? । तब तो सुलस बोला कि जब तुमलोग प्रत्यक्ष दुःख के भागी नहीं हो सकते हो तो क्या परोक्ष

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