Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 126
________________ (११८) नास्तिकशिरोमणि चार्वाक तो यह कहते हैं कि-जब आत्मा पदार्थ का ही ठिकाना नहीं है तो फिर हिंसा किसकी होगी ? । तात्पर्य यह है कि भूतों (पृथिव्यादि) से चलनादि सभी क्रिया उत्पन्न होती है, जैसे-ताड़ी, गुड, आटा वगैरह पदार्थ से एक मादकशक्ति विचित्र उत्पन्न हाती है । उस शक्ति के प्रध्वसाभाव में ही लोग मरण का व्यवहार करते हैं, किन्तु मरने के बाद कोई भी परलोक में नही जाता । क्योंकि जब आत्मा पदार्थ की सत्ताही नहीं है तब परलोक प्राप्ति कहां से होगी और परलोक का कारण पुण्य पाप जब सिद्ध नहीं हुआ तब पुण्य पाप का कारण धर्म अधर्म भी सिद्ध न होगा। और धर्म अधर्म की अस्त दशा में तप, जप, योग, ज्ञान, ध्यान आदि क्रिया सब विडम्बना प्रायः है, इत्यादि कुविकल्प करने वाले चार्वाकों को समझना चाहिए कि पूर्वोक्त युक्ति बतानेवाला कोई पदार्थ चार्वाक के पास है या नहीं। और यदि है तो वह पदार्थ जरूप है या ज्ञानरूप ? । यदि जडरूप है तो जड में ऐसी शक्ति नहीं है कि आस्तिकों को नास्तिक बना सके । और यदि ज्ञानरूप कहा जाय तो जड़ से अतिरिक्त पदार्थ सिद्ध हागा । क्योंकि चार या पांच भूतों से शक्ति उत्पन्न होने में जो दृष्टान्त दिया जाता है वह विषम दृष्टान्त है क्योंकि ताडी वगैरह पदार्थ में मदशक्ति तो होती है किन्तु पृथिव्यादि पदार्थों में ज्ञान गुण नहीं होता अतएव पञ्चभूतों से उत्पन्न होनेवाली शक्ति में क्या ज्ञान गुण दिखाई पड़ता है ? । तथा जो शक्ति हमारे तुझारे में है वह भी भिन्न स्वभाववाली

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