Book Title: Ahimsa Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 117
________________ (१०९) " माँस मछलिया खात हैं सुरापान से हेत । ते नर नरके जाहिंगे, माता पिता समेत "॥३॥ " माँस माँस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय । ___ आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय" ॥६॥ " यह कुकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय । मुख में आमिष मेलिके, नरक परंते जाय" ॥७॥ " ब्राह्मण राजा वरन का, और पवनी छत्तीस । __ रोटी ऊपर माछली, सब बरन भये खबीस " ॥८॥ " कजिजुग केरा ब्राह्मणा, माँस मछलिया खाय । पांय लगे मुख मानई, राम कहे जरि जाय " ॥९॥ " तिल भर मछली खाय के, कोटि गऊ दै दान । ___ काशी करवट लें मरै तौ भी नरक निदान" ॥ १६॥ " बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल । जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल"॥१८॥ " कबीरा तेई पीर हैं, जो जाने पर पीर ।। जो पर पीर न जानि है, सो काफर बेपीर" ॥ ३६॥ * हिन्दू के दया नहिं, मिहर तुरक के नाहि । कहै कबीर दोन गया , लख चोरासी मांहिं "॥३९॥ " मुसलमान मारे करद सो, हिन्द मारे तरवार । कहै कबीर दोन मिलि, जैहैं यम के द्वार" ॥४०॥ .

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