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षष्ठ अध्याय
टिप्पणियों से गांधी जी ने अत्यन्त सहज ढंग से सीधी सरल बातें कहीं हैं। वे एक सफल रचनाकार थे। उन्होंने मनुष्य के निर्माण के लिए तथा भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए जो सूत्र बनाये वास्तव में वह ही हमारे लिए गांधी दर्शन है। वे सूत्र हैं
1. सत्याग्रह
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सत्याग्रह का अर्थ है- आत्मबल । सत्याग्रह से तात्पर्य यह है कि ऐसी बात या कानून जो हमारे धर्म, अस्तित्त्व और मानवता के खिलाफ हो और उसे हम पसन्द न करते हों तो उसे मानने का नैसर्गिक अधिकार हमारे पास है। इसके लिए हम सहर्ष सज़ा भुगत लेंगे लेकिन अनीति और अधर्म पर नहीं चलेंगे। सत्य का आग्रह तो होना ही चाहिए। गांधी जी मानते थे कि 'कानून हमें पसन्द न हो तो भी उनके मुताबिक चलना चाहिए, यह सिखावन मर्दानगी के खिलाफ है, धर्म के खिलाफ है और गुलामी की हद है।' इसीलिए सत्याग्रही व्यक्ति न तो उस कानून के अनुसार चलेगा और न ही उस कानून बनाने वाले को मारने का प्रयास करेगा ।
गांधी जी ने इसी सत्याग्रह के बल पर करोड़ों जनता के मन में यह विश्वास पैदा किया कि करोड़ों लोगों के आत्मबल के आगे मुट्ठीभर अंग्रेजों का तोपबल भी किसी काम का नहीं है ।
2. छुआछूत का उन्मूलन
गांधी जी ने देखा कि भारत में अस्पृश्यता अर्थात् छुआछूत सबसे बड़ी कुरीति है। गांधी जी ने इस कुरीति को दूर करने के लिए जो संघर्ष किया वह राष्ट्र निर्माण की एक बहुत बड़ी मिसाल बन गया। उन्होंने कहा यदि कोई यह सिद्ध कर दे कि अस्पृश्यता हिन्दूधर्म का एक अनिवार्य अंग है, तो मैं हिन्दूधर्म को त्याग दूँगा। पहली बार गांधी जी ने ही अछूतों के लिए 'हरिजन' शब्द का प्रयोग किया था, यह आज भी प्रयोग किया जा रहा है।
गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि कोई भी मनुष्य अछूत नहीं हो सकता क्यों कि सभी में एक ही अग्नि की चिंगारियाँ विद्यमान हैं। किसी को