Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 163
________________ परिशिष्ट 161 ने विशेषकर युवकों को भटका दिया है। इसी का परिणाम है कि समाज का एक वर्ग एक तरफ तो जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित है वहीं दूसरी तरफ एक पैग विस्की के लिए एक लड़की जेसिका लाल उस देश की राजधानी में मारी जाती है जिस देश के 60 प्रतिशत ग्रामीण व शहरी निवासी पानी के साफ पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। आधुनिकता का नशा उस गरीब को भी, पेप्सी, लिम्का, थम्स-अप पीने का आदी बना रहा है जो घर में अपने बच्चों को दूसरे वक्त की रोटी देने तक में समर्थ नहीं है। उपभोक्तावाद का आतंक आज की सबसे संगीन तात्कालिक सामाजिक सूचना शायद यही है कि हमारे यहाँ अब उपभोक्तावाद हिंसक और आक्रामक हो गया है। दिल्ली में जेसिकालाल को इसलिए गोली मारी गयी थी क्योंकि उसने मनु शर्मा को और उसके साथियों को व्हिस्की देने से इंकार किया। लखनऊ में आइसक्रीम वाले रघुराज को राकेश ने इसलिए मार डाला था क्योंकि उसके पास कसाटा नहीं था। ये लोग ताकतवर, अमीर और अपराधी हो गये हैं। रातों में तेज रफ्तार से दौड़ती इनकी कारें फुटपाथ पर सो रहे और सड़कपर चल रहे राहगीरों को आसानी से कुचल डालती हैं। नव धनाढ्य समाज के बड़े बापों के बिगडैल बेटों के हाथों से मासूमियत से हो जाने वाली अनजानी परिणतियों वाली कत्ल की अनचाही घटनाएँ हैं या चरम भोगवाद की मध्य कालीन लोलुपता की नयी हिंसक पुनरावृत्तियाँ हैं ? या राज्य के संरक्षण में लम्पट और बर्बर हो उठे उपभोक्तावाद की नयी शक्ल है या पिछले एक डेढ़ दशक से लगातार आर्थिक भ्रष्टाचार और जघन्य सामाजिक अपराधों में लिप्त हमारे समाज के शिखर वर्ग के एक नये और अपेक्षाकृत डरावने चेहरे को उजागर करते संकेत रूपक हैं ? आज के दौर में हम एक ऐसे अभिजन वर्ग का उभार देख रहे हैं जो अपनी जीवन शैली और आकांक्षाओं में हमारे देश और समाज की

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