Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ 166 अहिंसा दर्शन समाज के बाहर नहीं हो सकती। इसके बीच के भेद के दुष्परिणाम हिंसा और युद्ध के रूप में दिखते हैं। इसे समझना और जीवन में उतारना ही एक मात्र विकल्प है। इस सन्दर्भ में अहिंसा प्रशिक्षण जैसे प्रायोगिक विचारों का भी उदय बीसवीं सदी में हो चुका है ये प्रक्रियायें भी अभी वक्त लेंगी, किन्तु यह तो तय है कि कोई भी समाज आतंकवाद को हिंसा को अशान्ति को सतत बर्दाश्त नहीं कर सकता, इसलिए परिवर्तन स्वयं से ही करना होगा। 7 हम बुरे के प्रति सतर्क रहें और अच्छे के लिए आश्वस्त, तभी कुछ नया सर्जन कर सकते हैं, एक नयी समाज मीमांसा की तरफ बढ़ सकते हैं जो भय मुक्त अहिंसक समाज संरचना की अवधारणा प्रस्तुत कर सके और अहिंसक समाज तथा राष्ट्र का निर्माण कर सके ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184