Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 175
________________ निष्कर्ष 173 देना चाहिए। विश्व शान्ति के प्रयासों में पहला कदम यह होना चाहिए कि देश के नौनिहालों को जन्म से ही अहिंसा की अनिवार्य शिक्षा दी जाय। दु:ख होता है जब बच्चों को वर्णमाला के कैलेण्डर में 'ब' माने बन्दूक पढ़ाया जाता है। 'ब' माने 'बत्तख', 'बन्दर' भी छाप सकते हैं। नफरत और हिंसा को जन्म से समाप्त करने के लिए यह सूक्ष्म दृष्टि हमें रखनी ही होगी। मूल्यों को साम्प्रदायिक करार देकर कभी कभी हम बहुत बड़ी भूल कर देते हैं। आज सैक्स एजुकेशन पर कोई विशेष विरोध दर्ज नहीं होता किन्तु जब हम अहिंसा आदि शाश्वत मूल्यों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की बात कहते हैं तो साम्प्रदायिक कहकर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। प्रस्तुत ग्रन्थ के माध्यम से हमने यह समझाने का प्रयास किया है कि 'अहिंसा' साम्प्रदायिक नहीं है। इस शाश्वत मूल्य का सम्बन्ध प्रत्येक धर्म से है। वास्तव में यदि हम 'अहिंसा' की पुनर्स्थापना करना चाहते हैं तो उसकी मूलभावना को समझना होगा। विश्वशान्ति का मार्ग हमें अध्यात्म में ही मिलेगा। हम अध्यात्म का विकास जितना अधिक करेंगे उतने ही अधिक विश्व शान्ति के निकट पहुँचेंगे। भगवान महावीर जैसे महापुरुषों ने अपनी आत्मा को इतना अधिक निर्मल बनाया कि उनके व्याप्त आभामण्डल से नरकों में भी हिंसा रुक गयी, शेर-गाय एक ही घाट पर पानी पीने लग गये। इसीलिए विश्व शांति का सच्चा मार्ग आत्मज्ञान से होकर निकलता है। सच ही कहा गया है आत्मज्ञान ही ज्ञान है, शेष सभी अज्ञान। विश्व शांति का मूल है, वीतराग विज्ञान॥

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