Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 161
________________ परिशिष्ट 159 खोजने की उत्कण्ठ आकांक्षा उसके मानस को व्यग्र बनाए रखती है। युवा अवस्था में शरीर व मन अपूर्व ऊर्जाओं और आकांक्षाओं का भण्डार होता है। इस अवस्था में जब उसे रोजगार नहीं मिलता, उसकी ऊर्जा का सही उपयोग नहीं होता, प्रेम-प्रसंगों में जब वह असफल हो जाता है तब उसकी ऊर्जा का उपयोग राजनैतिक और साम्प्रदायिक लोग आतंक व हिंसा के लिए करते हैं और ऐसी परिस्थितियों में युवकों का यह भटकाव आग में घी का काम करता है, ज्वाला धधकती है और आतंकवाद प्रवर्धमान होता रहता है। आतंकवाद के रूप अभिजात्य वर्ग और पूंजीवादियों का आतंक समाज का एक वर्ग है जो सदा से अपने आपको ऊँचा समझता आया है। यह वर्ग अपनी पुस्तैनी दुष्प्रवृत्तियों के आधार पर सामान्य वर्ग को कई तरीकों से भयभीत रखता है। देश के लगभग 20 प्रतिशत लोग अपनी सामन्तशाही प्रवृत्तियों से देश के 80 प्रतिशत सामान्य मनुष्यों के स्वाभाविक विकास करने के अवसरों को छीन लेते हैं। ऐसी दशा में समाज में असामान्य वितरण, एक पक्षीय विकास, शोषण इत्यादि ऐसे कारण बन जाते हैं जो इनके कारण रूप शक्तियों को नष्ट करने के लिए क्रान्ति के रूप में तब्दील हो जाते हैं और इसी क्रान्ति को आतंकवाद की संज्ञा दी जाने लगती है। नक्सलाइट इसी तरह का आंतक है। लालफीताशाही का आतंक देश में अधिकांश शिक्षित वर्ग ऐसा है जिनके ऊपर हूकूमत का जुनून प्रारम्भ से ही चढ़ा रहता है वे वास्तव में प्रशासनिक सेवाओं में आने के बहाने अपनी अन्दर की ज्वाला को शान्त करने का माध्यम अपने पदों को बना लेते हैं। ये जनता के रक्षक एवं सेवक बनने के नाम पर सामान्य जनता को बेवजह प्रताड़ित करने से भी बाज नहीं आते। यह भी आतंकवाद का ही एक चेहरा है जो अपना हितैषी बनकर कानून और अधिकारों के माध्यम से जनता के दिल से भय दूर करने की अपेक्षा स्वयं अपना भय स्थापित कर लेता है।

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