Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 110
________________ 108 अहिंसा दर्शन अपने संगठन का सदस्य बनाते समय आप ग्यारह नियमों वाले प्रतिज्ञापत्र पर उस सदस्य से हस्ताक्षर करवाते थे, उसमें छठा नियम था - 'मैं सदा अहिंसा के सिद्धान्तों के अनुरूप जीवनयापन करूँगा।' और आठवाँ नियम था - 'मैं अपने कर्मों में सच्चाई और पवित्रता का पालन करूँगा।' आचार्य विनोबा और अहिंसा आचार्य विनोबा भावे ने 1940 में एकल सत्याग्रही के रूप में आजादी का ध्वज उठाने और धनाढ्यों के हृदयों को करुणा और ईश्वर भक्ति की ओर मोड़ने में अहिंसा का उपयोग किया। इन्होंने अगले चार दशक तक अहिंसा के आधार को बहुत विस्तार दिया। इसके लिए आचार्य विनोबा भावे ने 'भूदान आन्दोलन' चलाया। आचार्य विनोबा, गाँधीजी के प्रिय शिष्य तथा उत्तराधिकारी के रूप में जाने जाते थे। विनोबाजी देशभर में लाखों भूमिधरों के हृदयों को आन्दोलित करने में सफल रहे। उनकी प्रेरणा से भूमिधरों ने स्वेच्छा से चार लाख एकड़ से अधिक भूमि भूमिहीनों में बाँटने के लिए दान में दी। यह मात्रा प्रदर्शित करती है कि अहिंसा को सही परिप्रेक्ष में ग्रहण कर, सही ढंग से लागू करने से इसके अत्युत्तम परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। यह आन्दोलन संसारभर में अभूतपूर्व था। अब यह माना जाता है कि इस शान्त और प्रभावशाली आन्दोलन द्वारा भूमि वितरण और स्वातन्त्र्योत्तर भारत सरकार द्वारा किए गए अन्य भूमिसुधारों के बिना, भारत के गणतन्त्र का स्वरूप वह न होता, जो आज है। भूदान आन्दोलन की सफलता का सबसे बड़ा कारण यह था कि इसे यश और किसी भी भौतिक-लाभ की कामना से परे सन्त विनोबा जैसे पारदर्शी चरित्रवाले, निःस्वार्थ व्यक्ति ने सञ्चालित किया था। एक विशुद्ध अध्यात्म उनकी अहिंसा का लक्षण था। उनका जीवन धार्मिक शिष्टाचार का आदर्श नमूना था, जिससे प्रमाणित होता था कि किसी सन्यासी का कर्त्तव्य, मात्र एकान्त में जाकर जीवनयापन करना नहीं होता, बल्कि उसे जनता में जाकर काम करना और उसे आत्मान्वेषण का सही मार्ग

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