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अहिंसा दर्शन
व्यवसाय में अहिंसा
व्यवसाय और उद्योग, जीवन की आवश्यकता से जुड़े हुए हैं। इनके बिना जीवन नहीं चल सकता। इस शीर्षक के अन्तर्गत हम हर उस क्षेत्र को समेट सकते हैं, जिनका सम्बन्ध आजीविका अर्जित करने से है। व्यवसाय, उद्योग, नौकरी, खेती इत्यादि सभी क्षेत्र पैसा कमाने के प्रमुख साधन हैं। पैसा, जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। भौतिक जीवन की सारी व्यवस्थाएँ पैसे से ही सञ्चालित होती हैं; इसीलिए प्रत्येक मनुष्य का यह परम कर्त्तव्य है कि वह स्वयं और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भरपूर उद्यम करे तथा धन अर्जित करे।
नीतिकारों ने कहा भी है कि
कला बहत्तर पुरुष की तामे दो सरदार। एक जीव की जीविका, दजो जीवोद्धार।।
पैसा, उपयोगी होते हुए भी इसके साथ विडम्बना यह जुड़ी हुई है कि इसके साथ मनुष्य की स्वार्थी मनोवृत्ति का विकास भी बहुत तेजी से होता है। कहा जाता है कि 'पैसे ने अमुक व्यक्ति को अन्धा बना दिया है' - इसका क्या अभिप्राय है? मनुष्य, पैसे के लिए व्यवसाय करता है किन्तु इसके पीछे इतना पागल हो जाता है कि उसके लिए सामाजिक, पर्यावरण
और राष्ट्रीय हित का भी ध्यान नहीं रखता। व्यवसाय हिंसक हो जाते हैं और उसका प्रभाव मनुष्यों तथा राष्ट्रों के जीवन पर पड़ता है।
वर्तमान में माँस का निर्यात, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के निर्माण में पशु-पक्षियों का प्रयोग, औषधि निर्माण में जानवरों के अङ्ग-प्रत्यङ्ग और हड्डियों का प्रयोग, खाद्य पदार्थों में मिलावट, चमड़ा निर्माण हेतु बूचड़खानों की वृद्धि आदि ऐसे कार्य हैं, जो हिंसक व्यवसाय के जीते-जागते साक्षात् उदाहरण हैं। इन व्यवसायों से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव तो पड़ता ही है, साथ ही पशुधन की भी कमी होती है। इन व्यवसायों से अर्जित धन भी सुख और शान्ति नहीं दे पाता है।