Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 157
________________ परिशिष्ट-3 आतंक के नये चेहरे और शान्ति एवं अहिंसा आज मनुष्य मानसिक रूप से अस्वस्थ है। मानसिक अस्वस्थता के कई कारण हैं। उन कारणों में जैविक असन्तुलन, दूषित खानपान, दूषित विचार, दूषित वातावरण आदि प्रमुख कारण हैं। इस कारण मनुष्य मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है। हिंसा का विचार बहुत बड़ी मानसिक अस्वस्थ्यता है आतंकवाद भी एक मानसिक बीमारी का नाम है। | आतंकवाद आज बहुत विकराल रूप से हमारे सामने खड़ा है। यह समस्या आज इतनी अधिक बढ़ गई है कि इसने मनुष्य जीवन की अन्य सभी समस्याओं को पीछे ढकेल दिया है। चारों तरफ चर्चा चल रही है कि इस पर काबू कैसे पाया जाय ? मैं समसामयिक सन्दर्भ में यह प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ कि आज जिसे हम आतंकवाद समझ रहे हैं मात्र वह ही इस देश के लिए 'आतंक' नहीं है। 'आतंक' एक मानसिक बीमारी है जो कई रूपों में हमारे समाज को विषाक्त बना रही है। हर घर में 'ओसामा बिन लादेन' जैसे लोग बैठे हैं बस अन्तर इतना है कि वह लादेन अभिव्यक्त है जिससे अमेरिका भी परेशान था और शेष अनभिव्यक्त हिंसा का जहर यदि मन में बैठा है तो वह कभी न कभी अभिव्यक्ति पायेगा ही। समय-समय पर लादेन जैसे पैदा होते रहेंगे। आतंकवाद का नाम भले ही हमने बीसवीं सदी में सुना हो, पर यह कृत्य सदियों से हावी रहा है। इतिहास गवाह है कि आतंकवाद रूपी विषधर से आज न तो सोहनी महीवाल का पंजाब बचा है और न कमनीय कुंज गलियों वाला कृष्ण कन्हैया और राधा का ब्रज । इसके दारुण दंश की व्यथा से न तो महावीर, बुद्ध के उपदेशामृत से सिंचित बिहार ही वंचित है और न ही चैतन्य की भास्वर भक्ति की स्निग्ध रस धारा से आप्लावित बंग ही ।

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