Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 156
________________ 154 अहिंसा दर्शन जैन संस्कृति के अहिंसावादी आचार-विचार से इस्लाम धर्म भी काफी प्रभावित हुआ। कुरआन की आयतों में तो अहिंसा, जीवदया, करुणा का प्रतिपादन तो था ही, साथ ही उदारवादी तथा व्यापक सोच रखने वाले इस्लामिक सूफियों और दार्शनिकों को जब अन्य परम्पराओं में इन अच्छाइयों का उत्कृष्ट स्वरूप दिखाई दिया तो उन्होंने उन सद्गुणों को ग्रहण किया क्यों कि उन्हें यह भी याद था कि 'अल्लाह के पैग़म्बर प्रत्येक जाति में हुये प्रायः धार्मिक संकीर्णतायें हमारे चिन्तन को विकसित नहीं होने देतीं। आम अनुयायी वही जानते, समझते और मानते हैं जो धर्मगुरुओं द्वारा उन्हें बतलाया जाता है। आग्रहवश तथाकथित धर्मगुरु भी शास्त्रों के उन प्रसङ्गों को ज्यादा उभार कर व्याख्यायित करते हैं जिससे उनके स्वयं के आग्रह पुष्ट हों। फलस्वरूप शास्त्र की मूल दृष्टि समाज के सामने नहीं आ पाती है। शास्त्रों के नाम पर गलत सन्देश समाज को प्रसारित कर दिये जाते हैं। लोग भूलवश खुदा की आज्ञा समझकर ऐसे कृत्य भी करने लग जाते हैं जिन्हें खुदा पसन्द ही नहीं करता। इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी है अपनी विवेक चेतना को विकसित किया जाय, स्वयं सत्य खोजें-का स्वर मुखरित किया जाय और स्वयं मूलग्रन्थों को पढ़कर सही ज्ञान को सामने लाया जाय। इस प्रकार यदि और भी अनुसन्धान किये जायें तो इस्लाम में अहिंसा के प्रभाव, सिद्धान्त और प्रयोगों को और अधिक व्यापक रूप में खोजा जा सकता है। 1. कुरआन मजीद, सूर 10, आयत 47, 13/7,30/47,35/24,24, 14/4

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