Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 142
________________ 140 अहिंसा दर्शन बेटर एक बड़ी तश्तरी में पके हुये एक नवजात मानव शिशु को परोसने ले जा रहा था। यह घटना तो तब की है जब अन्न पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। उस चित्र को देखकर कई दिनों तक मैं चैन से सो तक न सका। स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से भी मांस मनुष्य का स्वाभाविक आहार नहीं है। मांस भक्षण से सामयिक उत्तेजना और शक्ति का अनुभव हो सकता है, परन्तु स्वास्थ्य को स्थायी रूप से सुदृढ़ और कार्यक्षम बनाने के लिए उसे कभी अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सकता। इस सम्बन्ध में केवल भारतीय मनीषी या शास्त्र ही पर्याप्त प्रकाश नहीं डालते, वरन् वर्तमान समय में यूरोप और अमेरिका के मूर्धन्य वैज्ञानिकों, शरीर-शास्त्र वेत्ताओं और प्रसिद्ध डाक्टरों ने भी जो खोज, परीक्षण एवं अनुभव किये हैं और जो निष्कर्ष निकाले हैं, उनसे भी यही सिद्ध होता है कि मांसाहार स्वास्थ्य की समस्या का स्थायी हल नहीं कर सकता। उससे अनेक प्रकार की शारीरिक-मानसिक बीमारियां ही उपजती हैं। प्राण ऊर्जा, शरीर और आहार सृष्टि की सर्वमूल्यवान कृति है मानव शरीर। जीवन का स्पन्दन शरीर के माध्यम से ही मुखरित हो सकता है। आत्मा का आधार भी शरीर ही है। मनुष्य शरीर में श्वास, इन्द्रिय, प्राण, मन, चित्त, भाव, कर्म, और चेतना के समन्वित रूप से ही जीवन सुमन सुरक्षित हो रहा है। इस संसार से कर्म का आधार है शरीर। पौद्गलिक सुख-दुःख की अनुभूति भी इसी के माध्यम से होती है। जीवन की प्रवृत्ति और निवृत्ति के पथ पर अग्रसर होने हेतु तप, साधना, मौन व ध्यान का मार्ग भी इसी शरीर द्वारा प्रशस्त होता है। प्राणशक्ति का पोषण भोजन पर आधारित है। भोजन से ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा हमारे शरीर का पॉवर हाउस है, जो प्राण से परिवर्तित होता है। रोगाणुओं तथा रोग से लड़ने के लिए प्रत्येक प्राणी तथा वनस्पति में वह दिव्य जीवनीशक्ति प्रकृति ने कूट-कूट कर भर रखी है। प्रत्येक सजीव उस दिव्य जीवनी शक्ति को लेकर पैदा होता है। जगत् में जो भी सुख, स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य की अभिव्यक्ति है, वह उस दिव्य जीवनी शक्ति के कारण है। इस

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