Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

View full book text
Previous | Next

Page 128
________________ 126 अहिंसा दर्शन विद्रोह, कानूनी कार्यवाही तथा अनेक ऐसी समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं, जिससे मनुष्य तथा समाज अशान्त बना रहता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहाँ व्यावसायिक मनोवृत्तियों ने शोषण की पराकाष्ठा कर दी और उसके अंजाम अत्यन्त हिंसात्मक हुए। समाज तथा राष्ट्र में शान्ति और अहिंसा की स्थापना के लिए आवश्यक है कि अहिंसक व्यवसाय की अवधारणा का विकास किया जाए। शोषण तथा हिंसा से रहित अर्जित पूंजी ही राष्ट्र की समृद्धि का माध्यम बन सकती है। सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का वाक्य है कि अर्थशास्त्र के सारे रास्ते नीतिशास्त्र से होकर ही गुजरते हैं। राजनीति में अहिंसा सैद्धान्तिक आधार पर राजनीति अहिंसक ही होती है। इस क्षेत्र में अहिंसा की अपनी अलग व्याख्याएँ हो सकती हैं किन्तु उनके मुख्य स्रोत अहिंसक नीतिशास्त्र से ही आते हैं। यह बात अलग है कि वर्तमान में राजनीति और हिंसा को एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाता है। आज समाज के हिंसक और दबंग व्यक्तित्त्व, लोकतान्त्रिक कमजोरियों का फायदा उठाकर सत्ता के गलियारों में नायक बनकर स्थापित हैं। विडम्बना यह भी है कि उन सभी लोगों ने यह सब पाने के लिए अहिंसक नारों का प्रयोग किया है और अहिंसा का मुखौटा पहना है। कोई भी नेता यह घोषणा करके चुनाव नहीं जीत सकता कि मैं हत्याएँ करवाऊँगा, रिश्वत को बढ़ावा दूंगा, साम्प्रदायिकता को प्रश्रय दूंगा, गरीबों का शोषण करूँगा आदि। अहिंसा पर आधारित राजनीति वह है, जिसमें व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन नहीं हो; जहाँ व्यक्ति और राष्ट्र का सम्बन्ध, मात्र यान्त्रिक नहीं हो और साथ ही व्यक्ति की स्वतन्त्रता का मूल्याङ्कन हो। हिंसा की रोकथाम, सुरक्षा और विधि व्यवस्था कायम रखना ही राजनीति का कार्य नहीं है। अच्छी राजनीति का अर्थ है - व्यक्ति का हित और मानव कल्याण अर्थात् राज्य को विधि-व्यवस्था से पूर्व व्यक्तित्त्व निर्माण की दिशा में ठोस कार्यक्रम लागू करना। राज्य, गरीबी आदि दूर करने के

Loading...

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184