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अष्टम अध्याय 2. दृष्टिकोण परिवर्तन
अहिंसा प्रशिक्षण का द्वितीय आयाम है - दृष्टिकोण परिवर्तन। गलत दृष्टिकोण के कारण मिथ्या धारणाएँ, निरपेक्ष चिन्तन और एकाङ्गी आग्रह पनपते हैं। मिथ्या धारणाएँ, निरपेक्ष चिन्तन और एकाङ्गी आग्रह हिंसा के मुख्य कारणों में हैं। जबकि सापेक्ष चिन्तन सामाजिक सम्बन्धों की भूमिका में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सापेक्ष चिन्तन होता है तो फिर स्वार्थ की सीमा निश्चित हो जाती है। यह नहीं हो सकता कि समाज के बीस प्रतिशत व्यक्ति अतिभाव में जीवन जिएँ और अस्सी प्रतिशत व्यक्ति भूखे मरते रहें।
मानवीय सम्बन्धों में जो कटुता दिखाई दे रही है, उसका हेतु निरपेक्ष दृष्टिकोण है। सङ्कीर्ण राष्ट्रवाद और युद्ध भी निरपेक्ष दृष्टिकोण के परिणाम हैं। सापेक्षता के आधार पर सम्बन्धों को व्यापक आयाम दिया जा सकता है। मनुष्य, पदार्थ, वृत्ति, विचार और शरीर के साथ सम्बन्ध का विवेक करना, अहिंसा के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्यों के प्रति क्रूरतापूर्ण, पदार्थ के प्रति आसक्तिपूर्ण, विचारों के प्रति आग्रहपूर्ण, वृत्तियों के साथ असंयत और शरीर के साथ मूर्छापूर्ण सम्बन्ध है तो हिंसा अवश्यम्भावी है।
अनेकान्त का प्रशिक्षण मिथ्या धारणा, निरपेक्ष चिन्तन और आग्रह से मुक्त होने का प्रयोग है। परिवर्तन केवल जानने से नहीं होता; इसके लिए दीर्घकालिक अभ्यास अपेक्षित है। सर्वाङ्गीण दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए निम्न निर्दिष्ट अनेकान्त के सिद्धान्त और प्रायोगिक अभ्यासअनुप्रेक्षाओं का प्रशिक्षण आवश्यक है -
सिद्धान्त
प्रयोग
सप्रतिपक्ष
सामञ्जस्य की अनुप्रेक्षा सह-अस्तित्व की अनुप्रेक्षा
सह-अस्तित्व
स्वतन्त्रता
स्वतन्त्रता की अनुप्रेक्षा