Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 6
________________ जैन आगम : एक परिचय] ___ समूल विनाश के लिए साधनारत एवं प्रयत्नशील साधक निर्ग्रन्थ श्रमण ही कहलाते रहे । वही निर्ग्रन्थ श्रमण संस्कृति और परम्परा आज 'जैनधर्म' के नाम से विख्यात है। निर्ग्रन्थधर्म के प्रणेता निर्ग्रन्थ अथवा जैनधर्म के आराध्य एवं उपास्यदेव वीतराग पुरुष होते हैं। वे सर्वज्ञ और हितोपदेशी भी होते हैं। वे महापुरुष पहले स्वयं वीतरागता (राग-द्वेषरहितता) की साधना द्वारा अपने आत्मिक दोषों को दूर करके तथा कर्मावरणों का क्षय करके, आत्म-साक्षात्कार करके सम्पूर्ण प्रत्यक्षज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त कर लेते हैं, सर्वज्ञ बन जाते हैं; तब वे आत्म-साक्षात्कार में लोकालोक और जगत के जड़-जंगम, चर-अचर समस्त पदार्थों और उनके स्वरूप को प्रत्यक्ष देखने-जानने लगते हैं । इस प्रत्यक्षज्ञान के आधार पर वे साधकों के लिए तत्त्वज्ञान (दर्शन) और आचार-मार्ग (धर्म) का उपदेश एवं विधान करते हैं । उन प्रत्यक्षज्ञानियों अथवा सर्वज्ञों द्वारा प्ररूपित तत्त्वज्ञान और आचार-मार्ग को ही जैनधर्म में 'शास्त्र' माना जाता है। जैन परम्परा में 'शास्त्र' को 'आगम' कहा गया है। इसका दूसरा नाम 'गणिपिटक' भी है। इसी प्रकार तथागत गौतम बुद्ध की वाणी को आज 'त्रिपिटक' नाम से पहचाना जाता है। जैनधर्म और दर्शन के प्रणेता स्वयं में महान् साधक रहे हैं। वे कठोर साधना द्वारा समस्त कषायों का नाश कर, अज्ञानअविद्या को हटाकर, राग-द्वेष से सर्वथा मुक्त होकर और सम्पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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