Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 06
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ उच्चागोतस्स णं भतेस जाव अविहे या 3 स्वविसिट्टया वसिया 8 328 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / षष्ठी विभागः अकंतस्सरया जं वेदेति सेसं तं चेव जाव चउद्दसविधे अणुभावे पराणते 8 / उच्चागोतस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं पुच्छा, गोयमा ! उच्चागोतस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव अट्ठविहे अणुभावे पन्नत्ते, तंजहा-जाति विसिट्टया 1 कुलविसिट्टया 2 बलविसिट्ठया 3 रूवविसिठ्ठया 4 तवविसिट्टया 5 सुयविसिट्टया 6 लाभविसिट्टया 7 इस्सरियविसिट्टया 8 जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणामं तेसिं वा उदएणं जाव अट्ठविधे अणुभावे पन्नत्ते 1 / णीयागोयस्स णं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! एवं चेव, णवरं जातिविहीणया जाव इस्तरियविहीणया जं वेदेति पुग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम तेसिं वा उदएणं जाव अट्ठविधे अणुभावे पराणत्ते 10 / अंतरायस्स णं भंते ! कम्मस्स जीवेणं पुच्छा, गोयमा ! अंतराइयस्त कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पंचविधे अणुभावे पन्नत्ते, तंजहा-दाणंतराए लाभंतराए भोगंतराए उवभोगंतराए वीरियंतराए, जं वेदेति पोग्गलं वा पोग्गले वा जाव वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम वा तेसि वा उदएणं अंतराइयं कम्मं वेदेति, एस णं गोयमा ! अंतराइए कम्मे, एस णं गोयमा ! जाव पंचविधे अणुभावे पन्नत्ते 11 / // सूत्रं 212 // पराणवणाए कम्मपगडि पदे पढमो उद्देसो समत्तो॥ // इति त्रयोविंशतितमे पदे प्रथम उद्देशकः // 23-1 // ॥अथकर्मप्रकृतिनामके त्रयोविंशतितमे पदे द्वितीयोद्देशकः॥ कति णं भंते ! कम्मपगडीयो पराणत्ताश्रो, गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीयो पनत्तायो, तंजहा-णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं 1 / णाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविधे. पन्नत्ते ?, गोयमा ! पंचविधे पन्नत्ते, तंजहा-श्राभिणिबोहिय-नाणावरणिज्जे जाव केवलनाणावरणिज्जे
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/9fedfa84f6d4d9ac10162096ece0590a9dbff0418bd0242bf2c65da8d804a51d.jpg)
Page Navigation
1 ... 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408