Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 06
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 370
________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् :: पदं 24-2] [ 357 सरीरातिं श्राहारेति 2 / बेइंदिया पुब्वभावफ्राणवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पराणभावपरणवणं पडुच्च नियमा बेइंदियाणं सरीराति थाहारेंति, एवं जाव चरिंदिया ताव पुव्वभावपराणवणं पडुच्च, एवं पडुप्पराणभावपराणवणं पडुच्च नियमा जस्स जति इंदियाइं तइंदियाई सरीराइं श्राहारेंति सेसं जहा नेरइया, जाव वेमाणिता 3 / नेरइया णं भंते ! किं लोमाहारा पक्खेवाहारा ?, गोयमा ! लोमाहारा नो पक्खेवाहारा, एवं एगिदिया सव्वदेवा य भाणितव्वा जाव वेमाणिया, बेइंदिया जाव मणूसा लोमाहारावि पक्खेवाहारावि 4 / // सूत्रं 307 / नेरझ्या णं भंते ! किं श्रोयाहारा मणभक्खी ?, गोयमा ! ोयाहारा णो मणभक्खी, एवं सब्चे थोरालियसरीरावि, देवा सव्वेवि जाव वेमाणिया अोयाहारावि मणभक्खीवि; तत्थ णं जे ते मणभक्खी देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पजति इच्छामो णं मणभक्खणं करित्तते, तते णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकते समाणे खिप्पामेव जे पोग्गला' इट्ठा कंता जाव मणामा ते तेर्सि मणभक्खत्ताए परिणमंति, से जहा नामए सीया पोग्गला सीयं पप्प सीयं चेव अतिवतित्ताणं चिट्ठति, उसिणा वा पोग्गला उसिणं पप्प उसिणं चेव अइवइत्ताणं चिट्ठति, एवामेव तेहिं देवेहि मणभक्खीकए समाणे से इच्छामणे खिप्पामेव अवेति // सूत्रं 308 // परणवणाए भगवइए आहारपये पढमो उद्देसो समत्तो॥ // इति अष्टाविंशतितमे पदे प्रथम उद्देशकः // 28-1 // // अथ आहाराख्ये अष्टाविंशतितमे पदे द्वितीयोद्देशकः // आहार 1 भविय 2 सगणी 3 लेसा दिट्ठी 5 य संजत 6 कसाए 7 / णाणे 8 जोगु 1 वयोगे 10 वेदे. 11 य सरीर 12 पजत्ती 13 // 1 // : . जीवे णं भंते ! किं पाहारए श्रणाहारए ?, गोयमा ! सिय थाहारए

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