Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 06
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् / / पदं 26 ] [ 361 तियभंगो, अवसेसा थाहारगा नो अणााहारगा जेसि अत्थि बोरालियसरीरं, वेउब्वियसरीरी अाहारगसरीरी य श्राहारगा नो. श्रणाहारगा जेसिं अस्थि, तेयकम्मसरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, असरीरी जीवा सिद्धा य नो थाहारगा अणाहारगा 6 / दारं 12 / श्राहारपजत्तीए पजत्ते सरीरपज्जत्तीए पजत्ते इंदियपज्जत्तीए पज्जत्ते पाणापाणपजत्तीए पज्जत्तए भासामणपजत्तीए पजत्तते एतासु पंचसुवि पजत्तीसु जीवेसु मणूसेसु य तियभंगो, अवसेसा थाहारगा नो अणाहारगा, भासामणपजत्ती पंचिंदियाणं अवसेसाणं नत्थि, श्राहारपजत्तीअपजत्तए णो आहारए श्रणाहारए, एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि, सरीरपजत्तीअपजत्तए सिय श्राहारए सिय अणाहारए, उवरिलियासु चउसु अपजत्तीसु नेरझ्यदेवमणूसेसु छन्भंगा, अवसेसाणं जीवेगिदियवजो तियभंगो, भासामणपजत्तएसु जीवेसु पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु य तियभंगो, नेरइयदेवमणुएसु छभंगा, सव्वपदेसु एगत्तपोहत्तेणं जीवादिया दंडगा पुच्छाए भाणितव्वा, जस्स जं अत्थि तस्स. तं पुच्छिन्नति जस्स जं णत्थि तस्स तं न पुच्छिजति जाव भासा-मण-पजत्ती-अपजत्तएसु नेरइयदेवमणुएसु छन्भंगा, सेसेसु तियभंगो 7 // सूत्रं 311 // श्राहारपये बितिश्रो उद्देसो समत्तो // अट्ठावीसइमं पयं समत्तं // // इति अष्टाविंशतितमे पदे द्वितीय उद्देशकः / / 28-2 // // अथ उपयोगाख्यं एकोनविंशत्तमं पदम् // कइविहे णं भंते ! उवयोगे पनत्ते ?, गोयमा ! दुविहे उवयोगे पन्नत्ते, तंजहा-सागारोवयोगे य यणागारोवोगे य 1 / सागारोवोगे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ?, गोयमा ! अट्टविहे पन्नते, तंजहा-श्राभिणिबोहियनाण-सागारोवोगे सुयणाण-सागारोवोगे श्रोहिणाण-सागारोवयोगे मणपजवनाण-सागारोवोगे केवलनाण-सागारोवोगे मतिअण्णाण-सागा
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