Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 06
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 388
________________ ए . " श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् :: पदं 5 / [ 375 2 चिट्ठति, तसे णं ते देवा ताहिं श्रच्छराहिं सद्धिं सहपरियारणं करेंति, सेसं तं चेव जाव भुजो 2 परिणमंति 3 / तत्थ णं जे ते मणपरियारगा देवा तेसिं इच्छामणे समुप्पजति, इच्छामो णं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेत्तते. तते णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव तायो श्रच्छरायो तत्थ गयाथो चेव समाणीयो अणुत्तराति उच्चावयातिं मणाई संपहारेमाणीतो 2 चिट्ठति, तते णं ते देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं मणपरियारणं करेंति, सेसं निरवसेसं तं चेव जाव भुजो 2 परिणमंति 4 / ।।सूत्रं 326 // एतेसि णं भंते ! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाण य कयरेकयरेहितो अप्पा वा 4.?, गायमा ! सव्वत्थोवा देवा अपरियारगा मणपरियारगा संखेजगुणा सहपरियारगा असंखेजगुणा ख्वपरियारगा असंखेजगुणा फासपरियारगा असंखेजगुणा कायपरियारगा असंखेजगुणा // सूत्रं 327 // पराणवणाए परियारणापयं समत्तं // .. // इति चतुस्त्रिंशत्तमं पदम् // 34 // // अथ वेदनाख्यं पञ्चत्रिंशत्तमं पदम् // सीता य दव्वसरीरा साता तह वेदणा भवति दुक्खा। अब्भुवगमोवक्कमिया निदाय अणिदाय नायव्वा // 1 // सायमसायं सव्वे सुहं च दुक्खं अदुक्खमसुहं च / माणसरहियं विगलिंदिया उ सेसा दुविहमेव // 2 // कइविहा णं भंते ! वेदणा पत्नत्ता ?, गोयमा ! तिविहा वेदणा पन्नत्ता, तंजहा-सीता उसिणा सीतोसिणा 1 / नेरइया णं भंते ! किं सीतं वेदणं वेदेति उसिणं वेदणं वेदेति सीतोसिणं वेदणं वेदेति ?, गोयमा ! सीतंपि वेदणं वेदेति उसिणंपि वेदणं वेदेति नो सीतोसिणं वेदणं वेदेति, केई एक्ककपुढवीए वेदणाश्रो भणंति 2 / रयणप्पभा-पुढविनेरइयाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! नो सीतं वेदणं वेदेति उसिणं वेदणं वेदेति नो सीतोसिणं

Loading...

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408