Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 06
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्प्रज्ञापनोपाङ्ग-सूत्रम् पदं 36 ] [ 376 तंजहा-वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउब्वियसमुग्याए 7 / पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं जाव वैमाणियाणं भंते ! कति समुग्घाया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंच समुग्घाया पन्नत्ता, तंजहा-वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउब्वियसमुग्घाए तेयासमुग्घाए।नवरं मसाणं सत्तविहे समुग्घाए पन्नत्ते, तंजहा-वेदणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउब्वियसमुग्घाए तेयासमुग्घाए आहारगसमुग्घाए केवलिसमुग्घाए 1 // सूत्रं 331 // एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयरस केवइया वेदणासमुग्घाया अतीता ?, गोयमा ! अणंता 1 / केवइया पुरेक्खडा?, गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सस्थि तस्स जहराणेणं एको वा दो वा तिरिण वा उकोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा, एवमसुरकुमारस्सवि निरंतरं जाव वेमाणियस्स, एवं जाव तेयगसमुग्धाते, एवमेते पंच चउवीसा दंडगा 2 / एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवइया श्राहारसमुग्घाया अतीता ?, गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्स अस्थि तस्स जहराणेणं एको वा दो वा उक्कोसेणं तिरिण 3 / केवइया पुरेक्खडा ?, कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि जहगणेणं एको वा दो वा तिगिण वा उकोसेणं चत्तारि, एवं निरंतरं जाव वेमाणियस्स, नवरं मणूसस्स अतीतावि पुरेक्खडावि जहा नेरझ्यस्स पुरेक्खडा 4 / एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीता ?, गोयमा ! नत्थि 5 / केवइया पुरेक्खडा ?, गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि एको, एवं जाव वेमाणियस्स, नवरं मणूसस्स अतीता कस्सइ अस्थि कस्सइ नस्थि, जस्सत्थि एको, एवं पुरेवखडावि 6 // सूत्रं 332 // नेरइयाणं भंते ! केवइया वेदणासमुग्घाया अतीता ?, गोयमा ! अणंता 1 / केवइया पुरेक्खडा ?, गोयमा ! अणंता, एवं जाव वेमाणियाणं, एवं जाव तेयगसमुग्घाए, एवं एतेवि पंच चउवीसदंडगा 2 / नेरइयाणं भंते ! केवइया श्राहारगसमुग्घाया अतीता ?,
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