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दश-वकालिक-मूत्र । तृतीय अध्ययन।
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निज गुरु वा धर्मेर करिवे पूजन । ना लइवे श्रावकेर विनीत भजने ॥ जाति कुल कम्मै आदि करिया ख्यापन । करिवेना साधुजन भिक्षार ग्रहण ॥ उष्ण जल सांधुगण पानार्थे लडवे । सचित्त शीतल जल वर्जन करिवे॥ पिपासा वा क्षुधार्स हइया कखन । ना करिवे पूर्व भुक्त द्रव्येर स्मरण ।। क्षुधाते रोगते साधु आक्रान्त यखन । ना लइवे श्रावकेर कखन शरण ii६ .अनाचीर्ण दोष सदा परोक्षा करिया। लंइवे सतत खाद्य अवस्था बुझिया। संजीव मूलक आंदा इक्षुखण्ड आर । करिवना भ्रमक्रमे साधुरा आहार ।। सट्टीमूल काँचाफल वीज साधुगण । करिवना वर्चकन्द जीवित ग्रहण ।। ग्रहणं करिले उहां साधुरा कखन । अंनाचोर्णदीपे हवे प.पेते मगन ७ निम्नस्थितं कथा साधु स्मरिया सतत । लवणैर व्यवहार हवे अवगत ।।
आंछे एवं धराधामे विविध लवण । चिकित्सक रोग नाशे करेण ग्रहणं ॥