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दश-वैकालिक-सूत्र ।
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अष्टम अध्ययन।
मेघावी ओ विचक्षण वलिवे तखन । अष्ट सूक्ष्म कि कि प्राणी करिया वर्णन ॥१४ स्नेह सूक्ष्म पुष्पसूक्ष्म, प्राणि-सूक्ष्म त्रय । उत्तिङ्ग पणक सूक्ष्म, वीज सूक्ष्म छय ।। सप्तम हरितसूक्ष्म अष्ट अण्ड हय । उक्त अष्टसूक्ष्म साधु करेन निश्चय ॥१५ अष्टविध सूक्ष्म ज्ञान लमि साधुजन । सर्वभावे सुसम्मत अप्रमत्त मन ॥ सर्वेन्द्रिय समाहित करि तपोधन । काय मनोवास्ये जीव करेन रक्षण ॥१६ शेषौपधि, कालभूमि, शय्या काष्टासन । अथवा उच्चार भूमि तृणमय स्थान ॥ सचित्त अचित्त कि ना परीक्षा करिते। भाल रूपे देखिवेक साधु शुद्ध चिते ॥१७ विष्ठा मूत्र नाकमल देहमल - चय। निर्जीव भूमिते साधु फेलिवे निर्भय ।।१८ पर गृहे प्रवेशिया साधु शुद्धज्ञान । पान वा भोजन हेतु करि अवस्थान ।। गवाक्षादि ताकाइया कभु ना देखिने । प्रयोजने परिमित सुवात्य बलिवे ।। दिवेना आपन मन चिर साधुवर । काहार सुन्दर अति रूपेर ऊपर ।।११