Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 186
________________ दश-वकालिक-सूत्र! , प्रथम चूलिका । .. त्यजि भागवती दीक्षा गृही येवा हय । गृहस्थेर सुखभोगे आसक्त हृदय । वमन करिया पुनः ये करे भोजन । तारमत तिनि हन तुच्छर कारण ॥६ , संयम त्यजिया पुनः गृही हन यिनि ।. दुर्गति लाभेर पथे चलिवेन तिनि ॥६ भार्या पुत्र मित्रामित्र युक्त ए संसारे। धर्मलाभ कोन जन करिते ना पारे। चलिले साधक लये संयम. दुर्लभ । धर्मलाभ तार पक्षे अतीव सुलभ ।।८. ये गृहस्थ असंयमी हय क्षितितले। संसर्गज रोग तारे नाशे अवहेले ॥8 सङ्कल्प विकल्प आदि आतङ्क मनेर । गृहस्थेर सदा हय कारण नाशेर ॥१० जीविका निर्वाहे गृही सतत चिन्तित । 'वाणिज्यादि सदा करे अभाव ताड़ित ॥ कत कष्ट पाय सदा गृहे करि वास। संयमीर विना क्लेशे मोझते प्रयास ॥११ यथा कीट आत्मकोशे वद्ध सदा रय । गृहावास महावन्ध जानिये निश्चय ॥ उपक्लेश चिन्ता न्य संयमि-जीवन, सुखमय संदा हय मोक्षेर साधन ॥१२..

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