Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 197
________________ दश-वकालिक-सूत्र । १७५ . द्वितीय चूलिका। मासादि कल्प समाप्ति हले शुद्धप्राण । करिवना सेइ स्थाने साधु अवस्थान ॥ स्वाध्याय भूमि ओ शय्या भक्तपान एवे । आमाके सादरे तूमि अर्पण करिवे॥ करावेना एइरूप प्रतिज्ञा कखन । गृहस्थके साधुजन रमरि सत्यपण ॥ प्रामे वा श्रावककुले देशे वा नगरे । करिवेना माया कोन वस्तुर उपरे ।।८ गृहस्थर भोजनादि सेवा ना करिवे। वन्दना प्रणति पूजा साधुरा त्यजिवे ।। ये साधु-गणेर सङ्ग ना हय कखन । चारित्रेर हानि कभु जानि सर्वक्षण ।। ताहादेर संगे थाकि साधक सुमति । करिवेक मित्रभावे एकत्र वसति ।। साधु गुणाधिक किम्बा समगुण सखा। विहार कालेते यदि नाहि पाय देखा ॥ ताहले एकाकी त्यजि पापज आचार। अनासक्त हये कामे करिवे विहार ।।१० वर्षाऋतु काले साधु शुधु चारि मास । ऋतुबद्धकाले पुनः एकमास वास ॥ . एकस्थाने करिवेक संयम-प्रधान । आगम कथित इहा उत्कृष्ट प्रमाण ।।

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