Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur
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दश-वैकालिक-सूत्र ।
परिशिष्ट ।
रथनेमि ओ राजोमतीर उपाख्यान ।
वासुदेव हेन काले प्रसन्न वदने। आशीर्वाद देन ताके निम्नोक्त वचने। हइवे अभीष्ट सिद्धि शीव्र आपनार । दर्शन चारित्र ज्ञान आसिवे सुसार॥ निर्लोभता आदि द्वारा हवेन उन्नत। . हइवेन भूभारते सर्वत्र विख्यात । रामभद्र केशवादि यादव सकल। नेमिनाथ - वन्दनार्थ हयेन विल्लल ।। यादव सकल आसे त्वरा द्वारिकाय । अरिएनेमिर ख्याति उच्चस्वरे गाय ।। एदिके राजार कन्या सती राजीमती । दीक्षित अरिएनेमि जानि बुद्धिमती ।। शोके दुःखे अतिशय हये नियमाण । हाय हाय वलि हन विहल - पराण ।। जनक जननी तार निरखिया भाव। अन्यसह विवाहेर करेन प्रस्ताव ।। से प्रस्तावे राजीमती हन अस्वीकृता । धरमेते स्थिर - मति हलेन वनिता ।। विचारि स्वामीर कार्यो त्याग शिक्षादान । धन्या हये त्याग धम्म हन आगुयान ।

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