Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ ૮૨ दश-वैकालिक सूत्र | परिशिष्ट । रथनेमि ओ राजीमतीर उपाख्यान निज मोहे राजीमती निजके धिक्कारे । त्यागधर्म्म उपजिल ताहार अन्तरे ॥ नेमिनाथ लभेछेन परमार्थ ज्ञान । करेछेन चतुर्विध संघेर स्थापन || शुनि हेन वार्त्ता तार उपजिल मने । नेमिनाथ तुल्य. साधु ना आछे भुवने ॥ नेमिनाथ हते दीक्षा करिते ग्रहण | राजीमती मने मने करेन चिन्तन || सार्थक हइवे मोर तुच्छ ए जीवन । नेमिनाथ हते दीक्षा करिले ग्रहण | भावेन संसारे थाकि आमि कि करिव । दीक्षा लाभे श्रेष्ठ पथे सत्त्वर चलिव ॥ जितेन्द्रिय राजीमती दीक्षिता हइते | वहिर्गत हइलेन आलय हइते ॥ केशव आशिष देन अति फुल्लचिते । उत्तीर्ण हइवे तुमि भवार्णव' ह'ते ॥ राजीमती शीघ्र करि सन्न्यास ग्रहण | करेन पवित्र चित्ते संयम पालन || एकदा श्री नेमिनाथे करिते दर्शन । रैवतक अभिमुखे करेन गमन ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207