Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ १८० दश-वकालिक-सूत्र। परिशिष्ट । रथनेमि ओ राजोमतोर उपाख्यान । पथे हेरि बहु दीन पशु पक्षिगण । खोयारे आवद्ध हये करिछे क्रन्दन । नेहारि एहेन दशा सारथिके वर । जिज्ञासे इहार वल कारण विस्तर ।। 'सारथि विनीतभावे क्ले नेमिनाथे। विवाहे एसेछे वहु धनिजन रथे। मांस खाद्य व्यवहृत भोजने हइये। राजसिक प्राणि वधे सन्तोप लभिवे ।। शुनि हिंसावाफ्य नेमि सारथिर मुखे । चिन्तित हलेन अति जनता सम्मुखे ॥ भावेन अरिएनेमि आमार कारण । हइवेक पशु - पक्षि - जीवेर निधन ।। परलोके ना हइवे मङ्गल आमार । अलीक भोगेर तरे जीवेर संहार ॥ त्यजिया कुण्डल आदि भूपण सकल । द्वारिकाय चले यान हइया विह्वल ।। तथा हते रैवतके यान क्षुन्नमन । करेन अरिएनेमि केश - उत्तोलन ॥ प्रवज्या लइया हन ध्यानेते तत्पर । भुलेन संसार-माया साधु योगपर।

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207