Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 199
________________ दश- वैकालिक सूत्र | - द्वितीय चूलिका | भविष्यते जन्मावेना वाधा संयमेते । बुझिया चलिये साधु यह पृथिवीते ||१३ नियमित गतिपथे अश्व चालाइते । चालक अश्वके युक्त करे लागामेते ॥ तथा काय मनोवाक्ये संयम - विच्युत । स्वकीय आत्मा हेरि प्रमाद संयुत || - धीर साधु अवरोध, आत्मार विकार । करेन संयत आत्मा हये शुद्धाचार ॥१४ धैर्यशील जितेन्द्रिय ये साधु पुरुष । स्वहितालोचना - मतिरूप योग आसे ॥ काय - मनोवाक्ये सदा ताहाके सकले । संयमेते सावधान साधु श्रेष्ठ वले || पूर्व्वरूप गुणे युक्त सेइ साधुवर । सतत संयमे हुन वद्धपरिकर ॥१५ संयत - इन्द्रिय-युक्त संयमी साधक । स्वपर आत्मार हन सतत रक्षक ॥ परलोक समुत्पन्न अपाय हइते । करेण आत्मार रक्षा तिनि संयमेते । संसारे आवद्ध हय आत्मा अरक्षित । सर्व्वदु:ख मुक्त हय आत्मा सुरक्षित || तीर्थकर महापूज्य साधक याहारा । दियाछेन उपदेश हितार्थे ताहारां ॥ स्मरि सेइ उपदेश त्यजि स्वकल्पना । वलितेछि पूर्व्वरूप करिओ धारणा ॥ विविक्तच नामक द्वितीय चूलिका समाप्त | - १७७

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