Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ दश-वैकालिक-सूत्र | प्रथम चूलिका | कुग्रामेते परित्यक्त श्रेष्ठीर मतन । ये साधु अनुतप्त हुन ॥५ असंयमी अतिक्रमि सुन्दर यौवन । वार्द्धस्य अवत्था मन्द यवे प्राप्त हुन ॥ गिलिया बड़शी मनुस्य यथा सहे फ्लेश । तथा वृद्ध लोभे पाय सन्ताप अशेप ॥ ६ असंयमी वृद्ध यवे हयेन पीड़ित । कुक्कुटुम्ब - दोपकर - चिन्ताय निरत ॥ शृहुल वन्धन्युत हस्तीर मतन । अनुतापे दग्ध हन वृद्ध आजीवन ॥७ असंयमी वृद्ध हरे पुत्रदारान्वित | दर्शन ओ मोह आणि कम्मैते व्यापृत ॥ कर्हम पतितपन गजेर मतन ! अनुतापानले दग्ध हुन सर्व्वक्षण ॥८ असंयमी वृद्ध जन चिन्तेन सतत । निम्नोक्त प्रकारे भवे हये सन्तापित || “यदि आमि थाकिताम साधुभावे स्थिर । प्रवज्या ते रति मोर थाकित गभीर || भावितात्मा च ये एइ क्षणे | वसिताम सर्व्वपूज्य आचार्य आसने" | संयमेते रत सदा महपिं पर्य्याय । सुखेर प्रदानकारी त्रिदिवेर न्याय || · १६७

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207