Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 191
________________ दर्श-वैकालिक-सूत्र । प्रथम चूलिका । अहेलि धर्मपथ भुझे ये विपय । दु.खप्रद विनपथे तार गति हय ।। बहुजन्म धूरि फिरि करिले यतन । जिनधर्म प्राप्ति तार ना हय कखन ॥१४ नरके याइया जन्तु बहुदु.ख पाय । अति फ्लेश यातायात करे तथा हाय ।। पल्य वा सागरोपम बहु काल थाके । कत ये यातना पाय विपम नरके। अरति स्वरूप दु.ख संयमे आमार । हे गुरो सतत हय कि करिव आर ॥१५ संयमे अरति रूप दुख चिर दिन । थाकिचेना ममलाग्ये प्रसुख बिहीन । भोगेर पिपासा वाड़े यौवन समये। वृद्धकाले ह्रास पाय शक्तिहीन हये। वृद्धकाले देह हते ना गेले पिपासा। आयुःशेपे दूर हवे एइ मोर आशा ।।१६ ये जन सर्वदा थाके संयमेते रत। तार आत्मा हय भवे अति दृढ़नत ॥ आसन्न विपदे त्यजे से देह केवल । करेना से परित्याग धरम सम्बल ॥ येमन प्रवल वायु उत्थित हइले । हेलाइते नारे कभु सुमेरु अचले॥

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