Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur
View full book text
________________
ܕ ܕ
दश- वैकालिक सूत्र |
द्वितीय चूलिका |
नाहि दोप इथे मोर गुरो शुद्धाचार | तोमार प्रदत्त ज्ञान करेछि प्रचार ॥ शुनिया पूर्वोक्त कथा पुण्यशीलजन । चारित्र धर्मेते रत हन सर्व्वक्षण ||१ विषय-विकार रूप प्रवाहे पतित । सांसारिक जीव सव हतेछ वाहित ॥ प्रतिकूल: प्रवाहेते पालिया संयम । शुद्धचित्त पुण्यफल लभेन परम ॥ सुयोग संयमे कारो हइले कखन । ना करिवे व्यर्थ उहा. विज्ञ साधुजन ॥ मुभुक्षु साधकवर मोक्षलाभ तरे ।. सतत संयमे स्थिर राखेन - आत्मारे ॥२ अनुकूल विपयादि सुख आछे यत । निम्नगति जलराशि पतनेर मतः ॥ संसारई अनुस्रोत शास्त्रे उक्त हय । प्रतिस्रोत विपरीत जानिवे निश्चय ॥
•
इन्द्रियादि जयकारी आस्रव भवोद्धारे प्रतिस्रोत जानिवे
भूतले ।
सकले ॥
विषम |
जनम मरण रूप संसार अनुस्रोत वलि उहा हय अनुगम ॥ संसारेर भोग लिसा हइते निस्तार । प्रतिस्रोत रूपे भवे हये -प्रचार ॥३

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207