Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ दश-वैकालिक-सूत्र | अथ प्रथम चूलिका | भिक्षु भिक्षुगुण युक्त तपोवले हय । दशमाध्ययने उहा उल्लिखित रय ॥ पूर्ण कर्म्म फले साधु यदि दुःख पाय । चूलिका द्वयेते आहे उद्धार उपाय ॥ गुरु महाराज कहे हे शिष्य ! आमार । संयम त्यजिया यदि दुःख हय कार ॥ संयम त्यजिते पुनः करे वा प्रयास । अष्टादश स्थान चित्ते करिवे विकाश ॥ लागाम धरिले अव सुपथेते धाय । अङ्कुश आघाते हस्ती हितपथे याय ॥ पताकार चले नौका चले नानापथे । पताका लइया चले ताइ साथे साथे । सेइ रूप यदि केह अष्टादश स्थान । बुझिया सतत राखे संयमे धेयान ॥ ताहार पतन भवे कभु ना सम्भवे । संसार सागर हते सेइ उद्धारिवे ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207