________________
दश-वैकालिक सूत्र ।
दशम अध्ययन ।
खड्गादि निशित अस्त्र रूप भीमानल | ज्वालेना वा ज्वालाय ना कखन प्रवल ॥ करे ना सम्मतिदान अग्नि प्रज्ज्वालने । सदा निवृत्त यिनि त्रिविध करणे ॥ सेइ साधु धराधामे सतत पूजित । भाव साधु नाम धरि हयेन विख्यात ||२ पाँखा द्वारा देह येवा ना करे व्यवन । ना कराय अन्य द्वारा उहा वा कखन ॥ व्यजने तत्पर जने नेहारि कखन । नाहि देन अनुमति यिनि तपोधन । करे ना कराये ना ये दुर्व्यादि छेदन | छेदने सम्मतिदान करे ना कखन ॥ करे ना सजीव खाद्य ये साधु ग्रहण | भाव साधु वलि विश्वे तिनि पूज्य हन ॥ ३ पृथ्वी तृण काष्ठ आदि आये सतत ।
स स्थावरादि कीट नाश हय कत || औदेशिक आहारेते वुझिया येजन । औदेशिक भोज्य द्रव्य करे ना ग्रहण || अन्नादि स्वयं कभु करे ना पाचन । ना कराय पर द्वारा येवां साधुजन ॥ देन ना सम्मति काके पाके अग्रसर ।
भाव साधु तिनि पूज्य साधक प्रवर ॥४
·
१५५