Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 178
________________ इरा-वैकालिक-सूत्र । दशम अध्ययन। श्री महावीर-वचने, बढ़ासक्त मन । पड्जीवे करेन ज्ञान आत्मार मतन ।। पञ्च महानत यिनि मोर कारण । संयत हदया. सदा. करेंन पालन ॥ हिंसा आदि पञ्चानव रोधेन सतत । भावसाधु वलि भवे तिनि हन स्यात ॥५ क्रोध आदि भयङ्कर चारिटि कपाय। त्याग कर साधु येवा प्रथित धराय॥ तीर्थङ्करः उपदेशे संयमेनिश्चलं । हइया ये साधु छिड़े माघार शृङ्खल चतुष्पद स्वर्ण रोप्य त्यजे.तुच्छ भावि । गृहस्थ सम्बन्ध छाड़े ममतानुधावी ।।. भाव भिक्षु वलि तारे भव साजन । ताहारं सुख्याति करे श्लाघ्य तिनि हन ॥६ अतीन्द्रिय विपयेते रहियाछ ज्ञान । सञ्चित कर्मर क्षये याहार धेयान ॥. कर्मवन्धरोधकारी संयमे- निरत। . तपस्या-प्रभावे. यार पाप दूरीकृतः॥ अशुभ: प्रवृत्ति याहा पापेर आवास। . . काय सनोवाक्ये यार हयेछे विनाश ।। . भाव भिक्षु वलि तिनि हयेन पूजित। तांहाके श्रद्धा करे मानव सतत.॥७।

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