Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Ramnibhushan Bhattacharya
Publisher: Parshwanath Jain Library Jaipur

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Page 181
________________ दश-वैकालिक-सूत्र दशम अध्ययन । जनम सरण रूप - संसार हइते। उद्धार करेन आत्मा तपस्या - वलेते ॥ भयङ्कर बुझि यिनि जनम मरण । साधु सदाचारे थाकि तपस्या मगन ।। भाव साधु वलि भवे तिनि ख्यात हन । ' सर्वलोके करे तारे सभक्ति पूजन ॥१४ हस्त पाद वास्ये यिनि सतत संयत । जितेन्द्रिय साधु यिनि धर्म-ध्याने रत ।। हइयाछे समाहित आत्मा यार भवे । अध्यात्म चर्चाय यिनि लिप्त सर्वभावे आगम सूत्रेर अर्थ यार सुविदित । भाव साधु वलि तिनि जगते विख्यात ॥१५ ये साधु पात्रादि वस्त्र - स्वीयोपकरणे । ममता लालसा त्याग करेन यतने ॥ विना परिचये गृहे भिक्षातरे यान । दीपहीन भिक्षा लाभे सन्तुष्ट पराण ॥ पुलाक ओ निस्पुलाक दोप हाते दूरे।. थाकेन सङ्कल्पवद्ध संयमेर तरे।। खरिद विक्रये किम्वा, सञ्चये विरत । हइया सकल सङ्ग त्यजेन सतत॥' भाव भिक्षु तार नाम सफल जीवन मोक्ष लाभे नित्य तिनि करेन यतन ॥१६

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